महापुरुष श्री अच्युतानंद दास जी के द्वारा लिखी मालिका की कुछ दुर्लभ पंक्तियां व तथ्य-
“अनुभवे ज्ञान प्रकाश होइबो अनुभव करमूढ़,
भबिस्य बिचार तेणी की कहिबी ज्ञाने नाही थलकुल,
लीला प्रकाश हेबह भक्तंक लीला भारी होइब लीला प्रकाश हेबो।”
अर्थात – कलियुग के अंत में केवल अनुभव के द्वारा ही ज्ञान का प्रकाश होगा। जब भक्तों के द्वारा श्रीभगवान को ढूंढने पर भी भक्तों को उनकी प्राप्ति नही होगी तब केवल अनुभव और निश्छल भक्ति ही भगवान प्राप्ति का एकमात्र सरल मार्ग होगा। श्रद्धा, विश्वास, अनुभव, और निश्छल भक्ति के द्वारा भक्तजन भगवान को प्राप्त करेंगे और उनका सान्निध्य पायेंगे।
इसपर फिर से महापुरुष अच्युतानंद जी मालिका में इस प्रकार लिखते हैं…
“कृष्ण भाबरस नोहे बेदाभ्यास पूर्ब जार भाग्य थिब।”
अर्थात – जन्म-जन्म का भाग्य अर्थात जिसके पूर्व जन्मों से भाग्य में भगवान की भक्ति होगी जो गोपी, कपि, तपी में से होंगे केवल उन्हें ही भगवान की प्राप्ति होगी और उन्हें ही मानव शरीर में श्रीभगवान के आगमन की सूचना अनुभव के माध्यम से प्राप्त होगी। केवल उन्हीं भक्तों तक मालिका की दिव्य वाणी पहुंचेगी। मालिका की ब्रह्म वाणी अमूल्य है इसके समान संसार में कोई वाणी नही है। इसकी कोई तुलना नही की जा सकती।
भक्त किस प्रकार से भगवान को पहचानेंगे ?
महापुरुष अच्युतानंद जी फिर से एक बार इस प्रकार से लिखते हैं…
भक्त भगवान को ज्ञानमार्ग, तर्क मार्ग, और शास्त्रों में बताए मार्ग के द्वारा नहीं पहचान पाएंगे। जो मनुष्य भगवान की परीक्षा लेने का प्रयास करेंगे वो अपनी बुद्धि, विचार और अपने मूढ़मति व चंचल स्वभाव के कारण पवित्र नही हैं। उनमें कभी-कभी तामसिकता आ ही जाती है। ऐसी तामसिकता के साथ उनमें यह भाव आता है कि वो त्रिभुवनपति श्रीभगवान की परीक्षा लेंगे। इसके ठीक विपरीत जिन लोगों में सात्विकता का उदय होता है, उनके भीतर भक्ति के भाव उत्पन्न होते हैं। वो भक्ति के अनन्त सागर में डुबकी लगाने लगते है, और उनके नेत्रों से भक्ति के रूप में प्रेम के अश्रुओं की अविरल धारा बहने लगती है।
महापुरुष मालिका के माध्यम से यह बताते हैं कि कौन से लक्षण वाले लोग भगवान को प्राप्त कर पाएंगे..
जिनके भीतर भक्ति के लक्षण होंगे, जो सरल हृदय के होंगे, पूर्ण सात्विक होंगे, जिनमें पूर्व जन्मों का संस्कार और पूर्ण समर्पण का भाव होगा, जो विषय वासना की आसक्ति से रहित होंगे, जिनमे अहंकार का कोई स्थान नही होगा, जिनका मुख्य लक्ष्य श्री भगवान की प्राप्ति होगी, जिनमें भौतिक संसार के सुख साधनों में कोई आसक्ति नही होगी, जो औरों को कष्ट पाता देख दुखी होते हैं, जो दिखावे से दूर होते हैं, जिनमे स्वाभिमान होता है, जिनके भीतर ऐसे लक्षण होंगे वही भक्त होंगे और भगवान की प्राप्ति करेंगे।
वर्तमान समय में भगवान किसी के भी पाप को अवश्य क्षमा करेंगे यदि मनुष्य समय रहते सात्विकता अपनाये, शुद्ध शाकाहारी बने, किसी भी प्रकार के छोटे या बड़े नशे को पूर्ण रूप से छोड़ दें, सदाचार को अपनाये, व अहम भाव अर्थात अहंकार को त्याग कर भगवान के श्रीचरणों की भक्ति में स्वयं को पूर्ण समर्पित कर दें। केवल इसी मार्ग के द्वारा अपने जीवन को साकार किया जा सकता है, अन्यथा भविष्य के महाविनाश की ज्वाला से बच पाना असंभव है।
दुर्व्यवहार और गलत कार्यों के कारण आज पाप अपनी चरम सीमा को लांघ रहा है, और पृथ्वी बार-बार प्रकम्पित हो रही है। भूकम्प आ रहे हैं, वसु माता पाप के भार को सह नही पाती है और अपने मस्तक को हिलाती है तब पृथ्वी के कई स्थानों में भूमि कम्पन होता है। कुछ समय के पश्चात भूकंप की रफ्तार और बढ़ जाएगी। यही विनाश के लक्षण हैं, इसलिए समय रहते चेत जायें अन्यथा देर से यदि चेत भी गए तो समय नही रह जायेगा।
“जय जगन्नाथ”