महापुरुष श्री अच्युतानंद दास जी के द्वारा भविष्य मालिका में लिखी एक दुर्लभ पंक्ति-
“मर मर कही सर बीमरिबे अच्युतारह किस गला।
चेतुआ पुरुषा चेतारे विहारे विहंता पुरुषा मला ।।”
अर्थात-
कलयुग के अंतिम समय में मनुष्य समाज में मनुष्यों का दम्भ, गर्व व अहंकार चरम शिखर पर रहेगा। अपने गर्व, अहंकार, पद, प्रतिष्ठा और संपत्ति के कारण मनुष्य मैं, मेरा, तू, तेरा, मेरी संपत्ति, मेरा पैसा, मेरा घर, मेरी क्षमता, मेरा अधिकार, मेरा परिवार, मेरे बच्चे, मैंने सब कुछ किया, या ये मेरा है, मैं ही सब कुछ हूँ, ऐसा कहेंगे व ऐसी मानसिकता के रहते वो धर्म, पवित्रता, सतर्कता एवं मालिका की उपेक्षा करेंगे।
केवल जो श्रीभगवान के भक्तगण होंगे, जो गोपी,कपि,तपी होंगे जिन्होंने सत, त्रेता और द्वापर में धर्म संस्थापना के कार्य में प्रभु का साथ दिया था, वही भक्त मालिका के गूढ़ रहस्यों को समझ पायेंगे, ऐसे पवित्र भक्तों की संख्या सीमित ही होगी।
अधिकांश लोग अहंकारवश धर्म, नीति, शास्त्र व वेद मार्ग को भूल जायेंगे। जो सच्चे ज्ञानी होंगे अर्थात आध्यात्मिक ज्ञान के ज्ञाता हैं। ज्ञान का तात्पर्य आधुनिक ज्ञान या विज्ञान से नही है एवं जिसने कलियुग के विद्यालयों में पढ़ाये गये ज्ञान को अर्जित किया और ख्याति प्राप्त की है। उन्हें हम आध्यात्मिक ज्ञानी नही समझेंगे। केवल शास्त्र व शास्त्र के मत के अनुसार जो भगवत चेतना, भक्ति एवं भगवान पर आश्रित और निरंतर भक्ति की अविरल धारा में है, जो भविष्य मालिका तथा वेदमार्ग को अनुसरण करते हैं वही मनुष्य ज्ञानी है। जो भविष्य मालिका की चेतावनी को समझकर चैतन्य हो जायेंगे तथा जो अनन्त युग के लिए कार्य करेंगे वही आगामी युग के बीज बनेंगे, अर्थात अगले युग में जाने के अधिकारी होंगे।
“जय जगन्नाथ”