श्रीभगवान के नित्य पंच सखाओं का चारों युगों में जन्म का विवरण

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आज से लगभग 600 वर्ष पूर्व श्री जगन्नाथजी की पावन भूमि, ओडिशा में भगवान श्रीहरि के नित्य पंचसखाओं (पांच परम मित्रों भक्तों) ने एक बार पुनः जन्म लिया। उन्होंने ताड़ के पत्तों पर लिखी अपनी ग्रंथावलियों में भविष्य में होने वाली घटनाओं की विस्तृत भविष्यवाणियां कीं, जो उनकी समाधि के बाद से ही एकएक कर सत्य सिद्ध हो रही हैं। उनकी वह ग्रंथमालाभविष्य मालिकाके नाम से जानी जाती है, जिसका प्रचारप्रसार आज विभिन्न भाषाओं में हो रहा है।

पंचसखासभी चार युगों में जन्म लेते और हरिभक्ति का प्रचारप्रसार करते आये हैं। हर युग में इनके नाम इस प्रकार थे:

“सतयुग”

  1. नारद
  2. मार्कण्डेय
  3. गर्ग
  4. स्वयंभू
  5. कृपाचार्य

 

“त्रेतायुग”

  1. नल
  2. नील
  3. जाम्बवंत
  4. सुसेन
  5. हनुमंत

 

“द्वापरयुग”

  1. दाम
  2. सुदाम
  3. सुबल
  4. सुबाहु
  5. सुभक्ष

 

“कलियुग”

  1. अच्युतानंद दास
  2. शिशु अनन्त दास
  3. यशवंत दास
  4. बलराम दास
  5. जगन्नाथ दास

 

                                   “जय जगन्नाथ”