महापुरुष श्री अच्युतानंद दास जी के द्वारा रचित मालिका की कुछ दुर्लभ पंक्तियाँ एवं तथ्य-
“तोके कहुतुबे जनम हेलेणी दर्शन करीचीमुई।
तोके कहुतुबे जन्म हेबे प्रभु ठार गार बूझो तुहि।।
बुद्धि विवेक को प्रभु हरि नेबे बणा हेबे सुज्ञजण।
अपना हस्तरे स्कन्द छिड़ाइबे मिलिबे देबि भबन।।”
अर्थात् – बहुत से भक्त भगवान कल्किदेव का दर्शन करेंगे एवं संसार को बतायेंगे भी कि मैंने विश्वाधार प्रभुजी का दर्शन कर लिया है, और बहुत से भक्त ऐसे हैं जो ज्ञानमार्ग को ही सर्वश्रेष्ठ एवं को स्वयं को शास्त्रों का ज्ञाता तथा सर्वोपरि समझते हैं। ऐसे लोग कहेंगे कि अभी प्रभु के धरावतरण का समय नही आया है। अभी बहुत समय शेष है कल्कि अवतार होने में। कलियुग की आयु ‘चार लाख बत्तीस हजार‘ वर्षों की है।
जो ज्ञान के द्वारा भगवान को ढूंढते हैं और शास्त्रों के तर्कों पर चलते हैं, जिन्हें मालिका के विषय में ज्ञात नही है, वो प्रभु के अवतार को नही मानेंगे और उन्हे अपने ज्ञान का अहंकार होगा। अतः उस समय देवी महामाया उनके ज्ञान को हर लेंगी , वे भ्रमित हो जायेंगे।
ऐसे लोग महाप्रभु को पहचान नही पायेंगे, उन्हें भगवान के पुरुषोत्तम स्वरूप के दर्शन नही होंगे। ऐसे स्वयंभू ज्ञानियों को रोग, महामारी तथा पंच महाभूत प्रलय अपना ग्रास बना लेगा। अतः वो सतयुग में नही जा पायेंगे।
धर्म संस्थापना के समय में शरणागत वत्सल, तारणहार प्रभो के श्रीचरणों में स्वयं को पूर्ण समर्पित करना ही एकमात्र उद्धार का मार्ग है। वर्तमान समय में भगवान के धरावतरण के पश्चात मनुष्य समाज को ज्ञानमार्ग को त्याग कर केवल भक्तिमार्ग को अपनाना चाहिये इससे मनुष्यों को संसार सागर से मुक्ति एवं परमशान्ति प्राप्त होगी |
कलियुग की ज्वाला में तप रहे मनुष्यों को एक अंतिम विकल्प के रूप में सहायता हेतु ही श्रीभगवान के द्वारा “सुधर्मा महा महासंघ” का गठन किया गया है, उसमें नीति व नियम बनाये गये हैं। सम्पूर्ण विश्व में जिनमें भी प्रभु के सान्निध्य प्राप्त करने की उत्कंठा जागेगी वह स्वयं ही अपने और अपने परिवार की सुरक्षा के लिये गठित किये गए नीति और नियमों का पालन करते-करते प्रभु की शरण में आयेंगे तथा अपने मानव जीवन को साकार कर (“अंत काल रघुवीर पुर जाई”) अंत समय में प्रभु के परम निवास स्थान (श्रीबैकुंठधाम) में जा सकते हैं।
जैसे नदियाँ समुद्र में मिल कर उसमें पूर्णतः समा जाती है वैसे ही आत्मा- परमात्मा में समा जाये तो मनुष्य जीवन ही सार्थक हो जाये। इसलिए सभी को मालिका का अनुसरण कर प्रेम, भक्ति, एवं प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण एवं विश्वास करना चाहिये।
” जय जगन्नाथ “