महापुरुष अच्यतानंद दास जी के द्वारा लिखी मालिका की कुछ दुर्लभ पंक्तियाँ व तथ्य-
“सियालदहरे पाती रेल पिन्धीन लोहार सरंखल
रहिची सही बंदी घरे मुक्ति लागिबे जग्य स्थले।”
अर्थात –
भारत के साथ तेरह मुस्लिम देशों के युद्ध के प्रारंभ में पश्चिम बंगाल राज्य के सियालदह में महायज्ञ का आयोजन होगा। उस समय महायज्ञ में प्रभु कल्कि के सोलह मंडलों के सभी आठ हजार भक्त सम्मिलित होंगे व यज्ञ को पूर्ण करेंगे। उसी समय एक अद्भुत घटना घटेगी। सियालदह में अंग्रेजो के शासन के समय निर्मित एक पीतल के रेल इंजन को वहाँ एक संग्रहालय में लोहे के संखल (लोहे की जंजीर) से बाँध कर सुरक्षित रखा गया है। वो इंजन उस संखल को तोड़ कर बिना किसी ड्राइवर के जगन्नाथ जी को लाने जगन्नाथ पूरी के लिए प्रभु कल्कि की इच्छा से स्वयं चल पड़ेगा। सियालदह में जो महायज्ञ का अनुष्ठान होगा उसी यज्ञ में उस पीतल के रेल इंजन को मुक्ति मिलेगी।
महापुरुष पुनः लिखते हैं…
“भक्तंकर कुरिबे कातर स्मरिबे कल्कि मनन्तर तेनुकर सेही समय समस्त भक्त।”
अर्थात –
उस समय सियालदह के यज्ञस्थल पर समस्त सोलह मंडल के आठ हजार भक्तजन भगवान कल्कि के नाम का भजन कीर्तन कर रहे होंगे, पूर्ण भक्ति भाव से स्वयं को भगवान को समर्पण कर रहे होंगे।
सियालदह के यज्ञ के समय श्रीक्षेत्र पर यवनों के आक्रमण पर महापुरुष लिखते हैं…
“बहिव तहि रक्त धारा खेत्रे कंपिबे चक्रधर,
संघार करता सदाशिव श्रीखेत्रे मिलिथिब आगो,
सेस्थाने तुम्भे गुप्तेथिब मोहि तेहि हेबि अविर्भाब,
एहि समय पाती रेल श्रीखेत्रे मिलिबे चंचल।”
अर्थात –
सियालदह के महायज्ञ के पश्चात विदेशी सेनाओं के द्वारा श्रीक्षेत्र (जगन्नाथ मंदिर) पर प्रहार किया जाएगा। श्रीक्षेत्र में भयंकर रक्तपात होगा। अनगिनत लोगों की मृत्यु होगी। जगन्नाथजी का श्रीक्षेत्र युद्ध के आहट से कांप उठेगा। उसी समय भगवान शिव और माँ भवानी को जगन्नाथ पुरी मंदिर पर शत्रुओं के द्वारा आक्रमण का ज्ञात होगा व ध्यान में बैठे उमापति महादेव के मन में यह बात आएगी की श्रीजगन्नाथ खेत्र में विपत्ति आई है। इस कारण से भगवान भोलेनाथ कैलाश छोड़कर जगन्नाथ पुरी पहुंचेंगे।
उसी समय भगवान कल्कि का अविर्भाव भी श्रीक्षेत्र पर होगा। उस भयंकर युद्ध के समय जब यवन सेना मंदिर के भीतर प्रवेश कर जायेगी तब बड़ी ही विभत्स परिस्थिति होगी। भारत की सेना व यवन सेना के बीच महासंग्राम हो रहा होगा, तभी भगवान कल्कि और सदाशिव आकर जगन्नाथ मंदिर व उड़ीसा की रक्षा करेंगे। उसी समय वो इंजन उस लोहे के संखल को तोड़ कर बिना किसी ड्राइवर के जगन्नाथ जी को लाने सियालदह से जगन्नाथ पुरी के लिए प्रस्थान करेगा। सियालदह से जगन्नाथ पुरी के लिए कोई रेल लाइन नही थी पर भगवान जगन्नाथ जी की कृपा से विगत चंद वर्षो के भीतर सियालदह से पूरी के लिए रेल लाइन भी बन गई है। वो ब्रास इंजन बिना किसी ड्राइवर के, प्रभु इच्छा से सियालदह से सीधे जगन्नाथ पुरी जाकर रुकेगा।
मंदिरे पसिबे झसाई पंडानकु हाणी देबे सेई।
अर्थात –
जब असंख्य मुस्लिम सेना जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश का प्रयास कर रहे होंगे, तब जगन्नाथ जी के सेवायतों के साथ उनका युद्ध होगा बहुत से लोग मारे जाएंगे। सात दिनों तक मुस्लिम देश की सेना वहाँ रहेगी और सात दिनों के बाद भारतीय सेना मंदिर को यवनों के कब्जे से छुड़ा लेगी।
देउले नीति बंद हेबो बिमला आखि तराटीब।
अर्थात –
भगवान जगन्नाथ जी पुरी में साठियेपोठि व्यंजन खाते हैं अर्थात पुरी श्रीक्षेत्र के अलावा प्रभु को सभी मंदिरों में सूखा भोग लगता है। केवल जगन्नाथ पुरी में प्रभु को साठियेपोठि व्यंजन का भोग लगता है।
भविष्य मालिका में वर्णित है जगन्नाथजी प्रतिदिन प्रयाग में स्नान करते हैं। बद्रीधाम में प्रभु श्रृंगार करते हैं। जगन्नाथ पुरी में प्रसाद ग्रहण करते हैं और उसके पश्चात प्रभु एक गुप्त स्थान में जाकर समस्त विश्व ब्रह्माण्ड की स्थिति को अनुशरण करते हैं। उसके बाद प्रभु द्वारिकाधीश जाते हैं और वहाँ विश्राम करते हैं। फिर रात्रि में प्रभु वृंदावन पर गोपियों के साथ प्रत्येक रात्रि को रासलीला करते हैं। ये जगतपति की धराधाम की दिनचर्या है।
जब पीतल का इंजन जगन्नाथ पूरी पहुंच जाएगा तब भगवान जगन्नाथ की नीति पूजा अर्चना बंद हो जाएगी। तब पुरी में जो माँ बिमला (दुर्गा) देवी है जो जगन्नाथ मंदिर के भीतर अधिस्ठात्री देवी है। उनकी पूजा भी जगन्नाथजी के साथ एक समान रूप से होती है वो माँ बिमला सारी घटनाओं को स्वयं चुपचाप देख रही होगी और उन्हें यह समझ आ जायेगा की यह सब प्रभु के धर्म संस्थापना के तहत हो रहा है। यह समय जगतपति के धर्म संस्थापना का है व प्रभु श्रीक्षेत्र को छोड़ कर छतिया वट जाने वाले हैं।
“गरुड़ आदि बिराजेते चाहिँना थिबे आज्ञामात्रे,
दखिण द्वारे हनुवीर मोडुमथिब भुजतार,
बोधिबे तार चक्रधर मर्त्यबैकुंठ हुए सार।”
अर्थात –
उसी समय भक्त गरुड़ व सभी वीर गण बैठकर प्रभु की आज्ञा की प्रतीक्षा करेंगे और सोच रहे होंगे कि प्रभु की आज्ञा पाते ही वो कैसे एक पल में समस्त यवन सेना का किस प्रकार से विनाश करेंगे। उनमें सामर्थ्य तो होगा पर बिना प्रभु की आज्ञा के वो यह नही कर पा रहे होंगे और तभी हनुमानजी (बेड़ी हनुमान) जो मंदिर के दक्षिण द्वार पर विद्यमान है। दक्षिण द्वार से प्रकट होकर कराल रूप धारणकर भीषण गर्जना करेंगे।
सभी वीर मिल कर प्रभु की आज्ञा की प्रतीक्षा करेंगे, तब महाप्रभु जगन्नाथ कहेंगे कि देखो इस कलियुग में मैं यहाँ दारूब्रह्म के अवतार में हूँ तथा मैं बौद्धरूप में भी हूँ। इसलिए में यहाँ सब कुछ देखूंगा परन्तु बोलूंगा कुछ नही। क्योंकि यह मर्त्य बैकुंठ है यहाँ मुझे युद्ध नही करना है। मेरे शरीर से मैंने कल्कि रूप में जन्म लिया है और कल्कि ही अब युद्ध करेंगे। इसलिए हनुमान और गरुड़ व तुम सभी इंतजार करो यह युद्ध का स्थान नही है।