महापुरुष श्री अच्युतानंद दास जी के द्वारा लिखी गयी भविष्य मालिका की कुछ दुर्लभ पंक्तियाँ व तथ्य-
“कहु अछिहेतु करी सुण सुज्ञ जने,
कलीरे कलंकी रूप हेबे भगवान,
कपटरे करूछन्ति लीला एसँसारे कपटरे।”
अर्थात –
महापुरुष ने मालिका की रचना किसी साधारण मानव के लिए नही की है अपितु जो भक्त हैं, जो पवित्र हैं और जिनमे सद्बुद्धि है, उन्हीं पवित्र भक्तों के पूर्व जन्मों के संस्कार को स्मरण करवाने के लिए की है। कलियुग के अंत समय मे भगवान कल्कि के अवतरण के विषय में भक्तों को अवगत कराने के लिए भविष्य मालिका की रचना की गई है।
महापुरुष एक बार फिर से कहते हैं…
भगवान कल्कि तो अवतार अवश्य लेंगे परंतु अवतरण के बाद प्रभु की लीलायें गुप्त होगी। इस कारण सभी भक्तों को प्रभु के दर्शन प्राप्त नही होंगे। सम्पूर्ण ब्रह्मांड की सभी आत्माओं के लिए महाप्रभु के साकार स्वरूप के दर्शन संभव नही होंगे।
“गुप्त अंगे खेलुच्छन्ति गुरुअंग धरि,
गुरुअंग धरि सेत संसाहर को आसी,
गुप्तरास जे गोपी संगे खेली ना प्रकाश गुप्तरासोजे।”
अर्थात –
भगवान कल्कि अपने गुरु अंश भगवान परशुराम (भगवान श्रीहरी विष्णु के अवतार भगवान परशुराम कल्किदेव के गुरु होंगे) और वेदव्यास की कला से एवं स्वयं भगवान श्रीहरि विष्णु की कला से धरावतरण करेंगे एवं सभी भक्तों के उद्धार के लिए धर्म संस्थापना प्रारंभ करेंगे।
जिनकी भक्ति दृढ़ होगी, जिन्हें पूर्ण विश्वास होगा, उन्ही भक्तों के लिए प्रभु के दर्शन शुलभ होंगे। जिनके मन मे द्वंद्व होगा, जिनके मन मे प्रश्न होंगे, जिनके विश्वास में कमी होगी, जो प्रभु की परीक्षा लेने की सोचेंगे, जिन्हें किसी चमत्कार का इंतजार होगा, उनके लिए प्रभु के दर्शन संभव नही हो पायेंगे।
महापुरुष फिर एक बार इस प्रकार से लिखते हैं…
“खिराधिनाथ कलंकी रूपहेले जेलू,
खितिरे कलंकी लीला प्रकासुछि तेणू भ्रमे सुनेहे।”
अर्थात –
भगवान कल्कि 64 कलाओं के साथ मानव शरीर में धरावतरण करेंगे। प्रभु वैकुंठ व छीरसागर को छोड़ कर तथा भगवान अनन्त (शेषजी) को अपने शरीर में धारण करके धरावतरण करेंगे। अर्थात समस्त भक्तजन इस युग में कल्कि के रूप में जगतपति भगवान! महाविष्णु का ही दर्शन प्राप्त करेंगे।
“जय जगन्नाथ”