महापुरुष श्री अच्युतानंद दास जी के द्वारा लिखी मालिका की कुछ दुर्लभ पंक्तियाँ व तथ्य-
त्रिभुवनपति भगवान कल्कि के द्वारा धर्म संस्थापना के समय तृतीय विश्व युद्ध के बाद भारत की जनसंख्या व परिस्थितियों के विषय में उड़ीसा के गुप्त ग्रंथ भविष्य मालिका में उल्लेख है…
“अर्धरु अर्धे मरिबे भारतवर्षरे सब राज्य शून्य हेब जुद्ध गल परे।”
अर्थात –
तृतीय विश्व युद्ध के पश्चात भारत की वर्तमान कुल जनसंख्या की चौथाई जनसंख्या ही बचेगी, अर्थात भारत की कुल 140 करोड़ लोगों की जनसंख्या में से घट कर केवल 33 करोड़ जनसंख्या ही बच पायेगी। अच्युतानंद जी भविष्य मालिका में पुनः लिखते हैं कि धर्म संस्थापना के पश्चात भारत के सभी राज्य सूने हो जायेंगे…
“गांव के रहिबे तीनी चारी जण पवन आहार करी।
अर्न मिलिब अर्न नमिलिब जल मुखेवलुथु हरि।।”जय जगन्नाथ ।। जय जगन्नाथ ।।
जय जगन्नाथ पतितपावन उड़ीसा बड़ ठाकुर ।कल्पवट वासी प्रभु ब्रह्मराषि कली कलुष निस्तारण।।
अर्थात –
सभी ओर शवों का ढेर लगा होगा भारत के सभी राज्य सूने हो जायेगें। प्रत्येक गाँव में केवल तीन से चार व्यक्ति ही जीवित बचेंगे बाकी सबकी मृत्यु हो जायेगी। जो तीन-चार लोग एक गांव में बचेंगे उन्हें भी खाने को भोजन नहीं मिलेगा। वो भगवान कल्कि के नाम को आधार बनाकर अर्थात वे अपने मुँह से केवल माधव हरि का नाम लेंगे। उन्हें पंद्रह दिनों में भी भोजन उपलब्ध नही होगा। धर्म स्थापना के बाद विश्व युद्ध के अंत में तीन से चार महीनों की अवधि बड़ी ही कष्टकारी होगी उस समय केवल माधव नाम पर ही आश्रित होंगे। भक्तों को बहुत कष्टों का सामना करना पड़ेगा।
भारत में केवल 33 करोड़ लोग बचेंगे और भारत के अतिरिक्त दूसरे देशों की जनसंख्या सिमट कर 31 करोड़ रह जायेगी। विश्व की कुल जनसंख्या 800 करोड़ से सिमट कर केवल 64 करोड़ ही रह जायेगी।
“बलराम हेबे राजा कान्हू परिचार, बसिब सुधर्मा सभा जाजनग्र ठार।”
उन 64 करोड़ भक्तों में से एक लाख भक्तों को चुन कर प्रभु कल्कि राजा बनाएंगे। तत्पश्चात उड़ीसा राज्य के बिरजा क्षेत्र पर भगवान कल्कि के द्वारा राजसूय यज्ञ का विशाल अनुष्ठान किया जायेगा। भगवान कल्कि के द्वारा धरती पर पुनः राज तंत्र की स्थापना होगी और प्रभु स्वयं चक्रवर्ती सम्राट के रूप में राजा बनकर सम्पूर्ण विश्व पर शासन करेंगे एवं 1009 वर्षो तक पृथ्वी पर अपने प्रिय भक्तों के साथ शासन करके अपनी लीला को समेट कर पुनः स्वधाम (वैकुंठ) गमन करेंगे।
“जय जगन्नाथ”