भगवान व्यास और महापुरुष श्री अच्युतानंद दास जी के द्वारा लिखी महाभारत और मालिका की कुछ दुर्लभ पंक्तियां व तथ्य-
भगवान व्यास जी के द्वारा महाभारत के वनपर्व में भगवान कल्कि के जन्म स्थान संभल नगर के विषय में संशोधन कर इस प्रकार लिखा गया था..
“कल्कि विष्णु यशा नाम द्विज काल प्रचोदित,
उत्पत्तेसो महा बीरजो महा बुद्धि पराक्रम।”
अर्थात –
भगवान कल्कि का जन्म विष्णु (विष्णु यश) यशगान करने वाले (द्विज) ब्राह्मण के घर पर होगा। भगवान कल्कि का जन्म अति पवित्र विष्णु अंश वीर्य से होगा, एवं वो महाबुद्धि और महापराक्रम के साथ जन्म लेंगे।
इसपर महापुरुष अच्युतानंद जी अपनी मालिका में इस प्रकार से लिखते हैं…
“अम्भे इच्छा कलै सप्तदीपमहि निमिसे भांगीवो पुहंण,
नेत्रमुहर कोटि सूर्ज जाहत निःस्वासुअर्ण चास,
लोमकेशपत ब्रह्माण्ड वहिचु एणुबिराट पुरुष।”
अर्थात –
महापुरुष अच्युतानंद जी ने भगवान व्यास जी के कथन को प्रमाणित किया और लिखा सम्पूर्ण विश्व के जितने भी ताकतवर देश है अमेरिका या चीन या रसिया या इंग्लैंड ये सभी एक साथ (इकट्ठा) भी हो जाये तो भी भगवान कल्कि के पराक्रम के सामने वो एक क्षण भी टिक नही पाएंगे। भगवान कल्कि स्वेच्छा से धर्म संस्थापना करेंगे, कई लोगो के तर्क होते हैं कि भगवान कल्कि दिव्य शरीर धारण करेंगे।
परंतु इस तथ्य को पूर्ण रूप से अस्वीकार करते हुऐ महापुरुष अच्युतानंद जी पुनः लिखते हैं कि-
भगवान कल्कि ही जगत के उत्पत्तिकर्ता है। वो जन्म के तुरंत बाद ही ब्रह्म प्रलय करने में सदा सक्षम है। उन्हें कोई दिव्य शरीर धारण करने की कोई आवश्यकता नही है, या आयु का कोई बंधन या समय सीमा उन पर किसी भी प्रकार से लागू नही होता है। ब्रह्म की कोई आयु नही होती ब्रह्म तो केवल ब्रह्म है, वो सदा थे हैं और सदा रहेंगे। ब्रह्म की कोई सीमा नही है वह निराकार है, साकार है, अनित्य है, विश्वव्यापी है, ब्रह्मांड व्यापी है, अनन्त है।
हरि अनन्त हरि गुण अनन्ता।
एक बार ऋषि मार्कण्डेय ने ब्रह्म प्रलय के समय समुद्र के जल में भगवान विष्णु को वटपुट पर अंगुष्ठ आकार के रूप धारण कर मुँह में उंगली डाल कर सोते देखा, तब भगवान के मुँह खोलने पर मार्कण्डेय ऋषि ने सूक्ष्म रूप धारण कर प्रभु के मुँह में प्रवेश किया तब भीतर जाकर उन्होंने विशाल पहाड़, समुद्र, नदी, तालाब, पेड़-पौधे, ज्वालामुखी, सूर्य व चंद्र और सम्पूर्ण ब्रह्मांड देखा चतुर्मुख ब्रह्मा, और स्वयं का आश्रम भी देखा इसलिये सम्पूर्ण सृष्टि उनमें सम्माहित है।भगवान की कोई आयु नही होती, उनकी इच्छा मात्र से सप्तदीपमहि अर्थात भगवान कल्कि दिखने में भले ही बच्चे हों पर केवल इच्छा कर लेने मात्र से वो सात महादेशों को कांच के बर्तन की तरह चूर-चूर करने में सक्षम है। उनके चाह लेने से कोटि-कोटि सूर्य का तेज उनके नेत्रों से निकल सकता है। किसी भी परमाणु शक्ति का उनके समक्ष कोई स्थान नही है।
महापुरुष फिर से मालिका में लिखते हैं..
“गुपत प्रगट कही तनुहाई अचंभित लागे वाणी,
चेतुआ भगत गुपत काहाकु बेल सुवछन्ति जाणी,
लीला प्रकाश हेब भगतंक लीला भारी होईब लीला प्रकाश हेब।”
अर्थात – महापुरुष कहते हैं यदि इन गुप्त बातों को भारत के लोगो में मैं प्रकाश कर दूं तो सभी आश्चर्यचकित हो जायेंगे। महापुरुष अच्युतानंद जी के इन बातों का तात्पर्य केवल उन पवित्र भक्तों से हैं जो भगवान के साथ प्रत्येक युग में धर्म स्थापना के समय जन्म लेते हैं। केवल वही भक्त इन रहस्यों को समझेंगे और पूर्ण विश्वास करेगें।
“जय जगन्नाथ”