महापुरुष श्री अच्युतानंददास जी व महापुरुष श्री शिशुअनन्त दास जी के द्वारा भविष्य मालिका में प्रभु के धरावतरण से जुड़ी कुछ दुर्लभ पंक्तियाँ एवं तथ्य-
“कली थाउ-थाउ सत्य केहुदिन हेबो केहीण जाणबीर,
एणूकरी मोरो अंतना पाईबे नाथीबारु अधिकार।”
अर्थात –
कलियुग के अंत समय में यानि मध्य कलियुग में ही धीरे-धीरे सतयुग का आगमन होगा, परंतु सभी इस दिव्य परिवर्तन को समझ नही पाएंगे। लोगों के द्वारा युग अंत के विषय में चर्चा करते-करते ही कलयुग समाप्त हो जाएगा। “मैं आ चुका हूँ, और मेरे आगमन का व मेरे द्वारा किस प्रकार से पृथ्वी पर धर्म संस्थापना का कार्य सम्पन्न होगा, एवं मेरे भक्तों का उद्धार कैसे होगा, उन लोगों को इन गुप्त बातों का पता भी नही चल पाएगा।
सभी अपने ज्ञान और तर्कों में ही उलझे रहेंगे लेकिन मेरे अंत को कोई जान नही पायेगा। अधिकांश वो लोग जो धन वैभव के लिए मनुष्य समाज में धर्म का व्यवसाय करते हैं। जो धर्म को ढाल बनाकर अपने व अपने परिवार के आनंद और उल्लास के लिए धन एकत्रित करते हैं। ऐसे अधर्मी मनुष्यों को धर्म कार्य, धर्म संस्थापना और मेरे धरावतरण के विषय में किसी भी प्रकार से जानने का कोई अधिकार नही है।
पक्षीराज गरुड़ श्रीभगवान से पुनः प्रश्न करते हैं…
हे जगत के स्वामी महाप्रभु इस कलियुग का अंत कब होगा, एवं मृत्युलोक (पृथ्वी) पर आपका धरावतरण कब होगा जब आप का धरावतरण होगा तब भक्तों का उद्धार कैसे होगा कृपया मुझे यह बतलाइये ?
चक्रधर कमलनयन भगवान महाविष्णु पक्षीराज गरुड़ के सभी प्रश्नों के उत्तर देते हुए कहते हैं
देखो गरुड़, कलियुग के अंतिम समय में पांच हजार वर्ष बीत जाने पर जब चंद्रमा से लगे तारे का उदय होगा। (वर्ष 2005 में बहुत मनुष्यों ने चंद्रमा के एकदम समीप एक तारे का लगभग दो महीनों तक अपने नेत्रों से दर्शन किया था) जब श्रीजगन्नाथ क्षेत्र पुरी के राजा जिन्हें (आज) “महाराज दिव्य सिंह देव चतुर्थ ” के नाम से जाना जाता है। उनके 47 अंक पूरे होंगे तब मैं भक्तों के उद्धार के लिए धरावतरण करूंगा। भविष्य मालिका में इसका स्पष्टरूप से वर्णन है।
पक्षीराज गरुड़ एक बार पुनः श्री भगवान से कहते हैं, कि हे जगत के तारणहार प्रभो ! भक्तों को आपके अवतरण विषय में कैसे ज्ञात होगा कृपया आप मेरा मार्गदर्शन करें ?
तब एक बार पुनः दीनानाथ भगवान श्रीहरि गम्भीर स्वर में गरुड़ जी के प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहते हैं…
हे गरुड़, इस गूढ़ रहस्य को कलियुग की भीषण ज्वाला में जल रहे सभी मनुष्य समझ नही पायेंगे। सुख, संभोग और धनोपार्जन में जो भी मनुष्य लगे होंगे वे मेरा पार नही पायेंगे, ऐसे लोग इन गूढ़ रहस्यों को जानने के अधिकारी नही होंगे। ऐसे लोग मेरे वैकुंठ (गोलोक) निवासी नही होंगे। पूर्व के तीन युगों से जो बैकुंठलोक के निवासी होंगे, जो देवता, यक्ष या गंधर्वों में से होंगे, केवल उन्ही भक्तों को भविष्य मालिका के प्रचार के माध्यम से मेरे धरावतरण की सूचना प्राप्त होगी। और वही भक्तजन धर्म संस्थापना के कार्य में मेरा सहयोग देंगे।
इस प्रकार से भगवान के द्वारा बताई व मालिका में वर्णित सभी निशानियाँ चंद्रमा से लगे तारे के तौर पर, या राजा दिव्य सिंह देब के 47 अंकों के तौर पर, वर्ष 2005 में पूर्ण हो चुकी है एवं वर्तमान में श्रीभगवान का धरावतरण भी हो चुका है।
पंच सखाओं में से एक महापुरुष शिशु अनन्त दास जी के द्वारा लिखी मालिका में प्रभु के धरावतरण की एक और निशानी इस प्रकार से वर्णित है..
“कर जोड़ी बोले बारंग भगत शेखर मुकुट मणि,
बेलकला जाणी कलपतरुरे गरल फलिबे पुनि,
एण पराएक होइबो बारंग रस मधुरो लागिबे,
आदोरे भकईबे कलीजुगे नरे भकी भस्म होइजिबे।”
अर्थात –
कलियुग अंत और प्रभु के धरावतरण के समय में एक संकेत इस प्रकार से भी पूर्ण होगा- नीम के पेड़ से दूध के जैसा तरल प्रदार्थ बहेगा और उसका स्वाद मधु के समान मीठा होगा। लोग इसे चमत्कार समझ कर उसका पान करेंगे तथा उस पेड़ की पूजा भी करेंगे। ऐसे लोगों को मृत्यु हो जायेगी। यह संकेत भी कई स्थानों पर देखा गया है।
इन संकेतों के बाद कलियुग के अंत में प्रभु के धरावतरण की बात मालिका और अन्य शास्त्रों में कही गई है। वर्तमान में ये सभी संकेत पूर्ण भी हो चुके हैं, एवं भगवान कल्कि का धरावतरण भी हो चुका है व धर्म स्थापना और विनाशलीला का कार्य भी चल रहा है। वर्तमान समय में इसका प्रभाव वैश्विक स्तर पर दिखने भी लगा है।
“जय जगन्नाथ”