महापुरुष अच्युतानंद दास जी के द्वारा वैष्णव धर्मी भक्तों के लिए भविष्य मालिका में लिखी कुछ दुर्लभ पंक्तियाँ व तथ्य-
“चोराईण नाबेले श्रीवृन्दावनरे प्रभुंक संगरे दलु ,
दाम सुदाम सुबल श्रीभछ पंचसखा संगेतिलु।”
अर्थात-
महापुरुष अच्युतानंद जी कहते हैं कि द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण के साथ हम सभी पंचसखा (दाम, सुदाम, सुबल, सुबाहु, सुभछ) गैया चराने वृंदावन को गये थे।
महापुरुष अच्युतानंद जी द्वापरयुग में वृंदावन में घटित एक घटना के विषय में कहते हैं…
“दिवस अवस हुअन्ते प्रबेस उत्तरा बाहूड़ा बेले
गोपी गोपाल गोबच्छा सहिते सदने आसिबा बेले।”
“ताहदेखिक आदिपूर्ण शसी सकती प्रकासी लह-लह जीवा कले,
गोपाल पुअंकु देखी जोग माया भखीवा मोने कल्पिले।”
अर्थात-
हम पंचसखा और भगवान श्रीकृष्ण व गोप, गोपाल, गौमाता सभी सूर्यास्त के समय घर को लौट रहे थे। उसी समय माँ काली (योगमाया) नें जब गोप-गोपालों को देखा तो उनके सुंदर व पवित्र शरीर को देखकर माँ के मुँह में पानी आ गया। माँ ने उनका भक्षण करने की इच्छा प्रकट कर अपनी जिव्हा का विस्तार किया, तब भगवान श्रीकृष्ण नें माँ काली से कहा तुम्हे क्या चाहिए मुझे बताओ माँ ?
तब माँ महाकाली ने प्रभु से कहा…
“बिसुद्धो सोरीर ओटे हंकर मोमन लोभ होईला,
रक्त मांस सुद्धअटे अहंकु भखीबा मोने कल्पिबा।”
अर्थात –
प्रभु! यह जो आपके गोप-गोपाल सखा हैं, ये सभी शुद्ध व पवित्र हैं। इस कारण से इनका भक्षण करने के लिए मेरे मन में लोभ उत्पन्न हुआ, मैं क्या करूँ? मुझे इन्हें खाने की तीव्र इच्छा हुई।
ये सुनकर भगवान श्रीकृष्ण माँ काली को उत्तर देते हैं...
“भवानी रगिर सुणि चक्रधर श्रीमुखरु आज्ञा देले सुध सोणित रक्तमाँस भखीबा कहिदेवा वाभोले मोर भकत मोहर सेचित्त मोरअंग अटन्ति ताकू तुम्भेवा जदिचभकिब अम्भे काहेमु वसंती।”
अर्थात –
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, देखो माता ये सभी मेरे संगी, साथी और मेरे सखा है। ये मेरे अभिन्न अंग है। केवल इन्ही के लिए तो मैंने धरा पर अवतरण किया है। यही सोलह सहस्त्र गोप-गोपाल, गोपियों के साथ ही मुझे वृंदावन की भूमि पर अनेक लीलाएं करनी है। इसलिए तुम्हारी यह इच्छा मैं इस जन्म में तो पूर्ण नही करूंगा।
माँ काली फिर से प्रभु के सामने अपनी इच्छा प्रकट करती है…
“कपट ना करी प्रभु नरहरि पेड़ीक इवच्छामूरे केहुँसे जुगरे केहुँसमयरे आगहो कुहोपथरे।”
अर्थात –
माँ काली प्रभु से कहती है कि प्रभु किस युग के किस समय मेरी इच्छा पूर्ण होगी। कब मुझे पवित्र माँस खाने मिलेगा? कृपया कर मुझे बतायें।
तब जगतपति, कमलनयन भगवान माँ महाकाली से कहते हैं…
“धन्य कलीजुगे अबतारो लेबी नदिया नवद्वीपरे सखा संगी तुम्भे समस्ते जन्मिबे भक्ति हेबजे प्रकासो।”
अर्थात –
प्रभु कहते हैं, घोर कलियुग के समय मैं जब नदिया नवद्वीप पर अवतार लूंगा, उस समय मुझे चैतन्य के नाम से जाना जाएगा। उसी समय मेरे वो भक्त जिन्हें तुम खाना चाहती हो वो भी मेरे साथ वहाँ जन्म लेंगे और फिर मेरे सभी देश-विदेश के भक्त धर्मप्रचार के द्वारा वैष्णव धर्म से जुड़ जाएंगे।
प्रभु पुनः कहते हैं…
“आम्भे वेनिभाई भकतंकु घेयनी देश-विदेश घमिबु
भकतंकु भेंट करी जेउचाट पासंड जनमोड़ीबू।”
अर्थात –
प्रभु कहते हैं कि मैं नदिया नवद्वीप में प्रेम व धर्म का प्रचार करूंगा तथा विश्व के सभी भक्त मुझसे जुड़ते जाएंगे। देहत्याग के कुछ समय के पश्चात कलियुग के अंत में, मैं पुनः कल्कि अवतार धारण करके देश-विदेश अर्थात सम्पूर्ण विश्व का भ्रमण करूंगा। उस समय पर मेरे जो भक्त होंगे वो मेरे साथ होंगे। लेकिन जो लोग पापी, असुर, या भ्रष्टाचारी होंगे उन सभी लोगों का मैं सत्य व धर्म की प्रतिष्ठा के लिए और सत्ययुग के आगमन के लिए उनका संघार करूंगा।
कमलनयन भगवान के द्वारा द्वापरयुग में माँ भद्रकाली को इस प्रकार से उनकी पवित्र माँस भक्षण की इच्छा की पूर्ति के लिए आश्वासन दिया गया…
“थोके मूढोजने भकत जनमे बैष्णब धर्म करिबे महिमा बुझिबे मंत्रजे सिखिबे सर्व विषय जाणीबे।”
अर्थात –
द्वापर में तुम्हारी मेरे भक्तों का भक्षण करने की इच्छा थी। कलियुग के अंत समय में जब मैं कल्कि अवतार धारण करूंगा तब मेरे वही भक्तों का भी जन्म होगा। वो सभी भक्त लोग उस समय मेरी महिमा का प्रचार कर रहे होंगे। मेरे सभी भक्त स्नान और पवित्रता के साथ नाम का भजन भी करेंगे और सभी नियम का पालन भी करेगें। लेकिन इसके साथ ही साथ वो लोग पाप भी करेंगे और गलत कार्य भी करेंगे। इस कारण उनके संहार का कार्य मैं आपको सौंपुंगा।
“थूके मद भक्ष्य करिण से मुख्य नागान्तो पथरे थिबे छटको नाटको करिण उच्चाटो अकर्म करी करिबे सुद्ध सोणित माँसोटे ताहांकर कारणों लोभिबे नाही तुम्भे माहामाई आसा रखीथिब तेतिकी बेलू कुचाहिँ।”
अर्थात –
प्रभु जी माँ से कहते हैं कि जो बैष्णव भक्त धर्म में रहकर नीति धारा का अवलंबन करेंगे लेकिन इसके साथ ही माँस का भक्षण भी करेंगे, वो सभी भक्त कलियुग के अंत में तुम्हारे लिए शुद्ध और पवित्र माँस होंगे। वो सत्ययुग को भी नही जाएंगे। उन्ही लोगों का तुम संहार करोगी और इस तरह द्वापर युग की तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी।
“मंत्र-जंत्र बुझी नवधा भकती है जिसे करुण थिबे माछ माँसो सुखुआ पखाल खाई द्वादस चिता काटिबे।”
अर्थात –
मालिका की यह पंक्तियाँ वैष्णब धर्म के सभी भक्तों के लिए नही है। यह पंक्तियाँ उन भक्तों के लिए है जो वैष्णब धर्म में रहते हुए मंत्र-यंत्र, पूजा विधि, व नवधा भक्ति में भी रहेंगे तथा चंदन तिलक लगाएंगे और साथ ही साथ मछली व माँस और अंडे का सेवन करेंगे। हर तरह के अभक्ष्य खाएंगे और भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति भी करेंगे।
“जय जगन्नाथ”