जाजनग्र की महिमा का बखान कर पाना संभव नही है

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महापुरुष अच्युतानंद दास जी के द्वारा मालिका में लिखी श्रीकृष्ण अर्जुन संवाद की कुछ दुर्लभ पंक्तियां व तथ्य

जब अर्जुन जगतपति भगवान श्रीकृष्ण से जाजनग्र के विषय में प्रश्न करते हैं, तब भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उसके प्रश्नों का उत्तर देते हैं…

 

पार्थ बाणी सुणि प्रभु चक्रपाणि बोलन्ति सुणो है 

बिर जाजनग्र कथा कहिबा गोगले नसरी हेबो पार।

अर्थात  

देखो पार्थ जाजनग्र के विषय में जितना भी कहा जाए वो कम है, जाजनग्र की महिमा का बखान कर पाना संभव नही है, हाँ इतना अवश्य जान लो कलियुग के अंत समय में जब मैं कल्कि अवतार लूँगा तब उस पवित्र भूमि पर मेरे नेतृत्व में सुधर्मा सभा बैठेगी ।

द्वापरयुग में जब धर्म संस्थापना का कार्य पूर्ण हो गया तब भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को बिरजा क्षेत्र जाने का आदेश दिया…

श्रीमदबैतरणी तटे

कचिल्यता पार्वती।

अर्थात  

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा की वैतरणी नदी (वृद्ध गंगा) के तट पर जहाँ माँ वेदा, विप्रा, वराहा, बिरजा, बैतरणी विराजमान है  तुम सभी भाई उस पवित्र स्थान पर तीर्थ करके आओ।

इसपर महापुरुष अच्युतानंद दास जी मालिका में इस प्रकार से लिखते हैं…

भारतर पुण्य पीठ ओड़राष्ट्रभुंइ तामध्यरे प्रभु ऐतेकथा जेबे हुईं।

अर्थात  

भारत के सभी पीठों में एक पुण्यभूमि है, पुण्यपीठ है, पवित्र तीर्थ क्षेत्र है उस स्थान में कलियुग के अंत और सत्ययुग के शुरुवात में बहुत से राज खुलेंगे बहुत सी दिव्य और गूढ बातें सबके सामने प्रकाश में आयेँगी।

महापुरुष फिर दोबारा इस प्रकार से उत्तर देते हैं…

जाजनग्र बोलीजिबे बैतरणी तीरे

ब्रह्मा शुभस्तंभ स्थापिथिले पूर्बरे।

अर्थात  

जाजनग्र में जहाँ वैतरणी नदी स्थित है उसके तट पर एक दिव्य स्थान पर परमपिता  ब्रह्माजी ने शुभस्तंभ को स्थापित किया था, वर्तमान में जाजनग्र में ब्रह्माजी के द्वारा स्थापित शुभ स्तंभ और वैतरणी (वृद्ध गंगा) व माँ विरजा, वराह नारायण, त्रिवेणी धार सब स्थित है, सर्वप्रथम जब ब्रह्माजी ने उस स्थान पर यज्ञ अनुष्ठान किया था तब माँ गंगा ने पृथ्वी पर धरावतरण किया था।

 

                                 “जय जगन्नाथ”