भगवान कल्कि का धरावतरण शंख, चक्र, गदा, पद्म लेकर चतुर्भुज में नही होगा

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आज जब धरती पवित्र घड़ी की ओर अग्रसर हो रही है, तो एक ओर संहार लीला अपने चरम  पर है, दूसरी ओर पाप भी अपने अंतिम चरण में है। जहाँ  एक ओर भक्तों के एकत्रीकरण के साथ उनके उद्धार का कार्य सम्पन्न हो रहा है तो दूसरी ओर पापियों का विनाश भी  हो रहा है। 

वर्तमान में हम सभी अत्यंत कठिन एवं  मूल्यवान समय को पार कर रहे हैं, इस विषम परिस्थिति से बचने का एक ही सुगम मार्ग है और वो है अध्यात्म एवं भगवान कल्कि की शरण के साथ- साथ भविष्य  मालिका का अनुसरण, क्योंकि  जो विनाश का तांडव सम्पूर्ण विश्व में चल रहा है उससे कई गुणा ज्यादा विनाशकारी तांडव मनुष्य समाज के सामने आने वाला है। मनुष्य समाज को स्वयं में  परिवर्तन करने की आवश्यकता है, अन्यथा उनके परिवर्तन ना होने पर प्रभु के प्रभुता  पर कोई असर नही पड़ने वाला है। 

धर्म संस्थापना के समय प्रभु के सम्मुख एकमात्र धर्म ही सर्वोपरि होता है, फिर चाहे कोई धर्म,  पंथ या  जाति, क्यों ना हो। जिसका  धर्मबल अधिक होगा वही दिव्य लोग सतयुग में प्रवेश पाएंगे । पाप, अन्याय और  अधर्म करने वालों  का विनाश निश्चित है, फिर चाहे वो कितना ही सक्षम  क्यों ना हो। उसे काल कवलित होने से कोई नहीं बचा सकता।  

मालिका में वर्णन और उसकी  धारा के अनुसार जो धर्म  संस्थापना के नायक हैं वो हैं  भगवान कल्कि। जो  महाविष्णु के अंतिम अवतार है उन भवभयहारी भगवान  कल्कि के शरण में सभी को, अर्थात जो भक्त हैं जिनमें भक्ति है, उन सभी को आना ही पड़ेगा। जो भक्त नही है उनके लिए प्रभु तक पहुंच पाने का कोई मार्ग नही है। केवल भक्तों के लिए ही भगवान हर  युग में साकार रूप धारण करते  हैं, और भक्तों के उद्धार के पश्चात सम्पूर्ण विश्व में पुनः रामराज्य की स्थापना करते हैं। आने वाले निकट भविष्य में  भारत की रक्षा कैसे होगी ये प्रश्न सभी के मन में  आता है, तो वर्तमान  संकट में भी भारत की रक्षा तो स्वयं जगतपति भगवान ही करेंगे

 भक्तों के तारणहार  महाप्रभु का जन्म भारत  देश में हुआ है। वर्तमान समय  में सम्पूर्ण विश्व की सभी महाशक्ति जो सनातन धर्म की अवहेलना कर रहीं हैं,उन सभी को उनका उत्तर  आनेवाला समय स्वयं देगा, तब उन्हें भी विश्वास भी हो जाएगा।   कोई भी अभिमानी और धर्म  की अवहेलना करने वाला अपने धन, क्षमता, ज्ञान या शास्त्र मार्ग और अपने धर्म या पंथ के द्वारा भगवान की  शरण में नही आ पायेगा, भगवान के समक्ष इन मार्गों का कोई महत्व नही है। उन दयानिधान के समक्ष केवल पवित्रता का ही मूल्य  और सत्कर्मो का महत्व है, धरती पर उसने कैसे कर्म किये हैं उसके भाव एवं  भक्ति की गुणवत्ता कैसी है, उसी के आधार पर प्रभु उनका  उद्धार करते हैं। मालिका के अनुसार भगवान कल्कि का धरावतरण शंख ,चक्र, गदा, पद्म लेकर चतुर्भुज रूप  में नही होगा, वो तो साधारण मानव के समान जन्म लेंगे।  जिस प्रकार भगवान श्रीराम या भगवान श्रीकृष्ण, भगवान परशुराम, भगवान बुद्धदेव , भगवान चैतन्य महाप्रभु  आदि ने धरती पर धरावतरण किया था.. भगवान कल्कि भी  उसी प्रकार साधारण  मानव के रूप में जन्म लेंगे और धर्म संस्थापना करेंगे। भगवान के हाथ में शंख  ,चक्र ,गदा ,पद्म नही होगा क्यों की कलियुग में प्रभु गुप्त स्थान में निवास करते हैं, प्रभु का प्रकाश केवल सदाचारी भक्तों के लिए होगा। केवल भक्त ही अनुभव,अनुभूतियों का आनंद उठायेंगे और उनको जान एवं पहचान पाएंगे

ये सभी बातें महापुरुष अच्युतानंददास जी ने अपने गुप्तग्रंथ  मालिका में श्रीभगवान की इच्छा से स्पष्ट शब्दों में लिखी है।

“छपना कोटि जीव जंतु कोटि तेंतीस देवो

कहे अच्युत कृष्ण भकती जार बासना थिबो।”

अर्थात् – 

छप्पन कोटि जीव जंतु अर्थात पिण्ड्ज (मनुष्य एवं स्तनधारी जीव ) और अंडज, स्वदज व उद्भिज सब मिलाकर 56  करोड़ प्रकार के जीव इस धरती पर पाये जाते हैं । मालिका में एक स्थान पर महापुरुष अच्युतानंद जी ने विशेष जोर दिया कि सभी लोगों को भगवान की प्राप्ति नही होगी। धरती पर देवी- देवताओं का जन्म भी हुआ है, जो विकार रहित है  और जिनमें पूर्व संस्कार हैं। जिन्हें  भगवान को पाने की अभिलाषा होगी और उन्हें ढूंढेगा और जो  भक्त गोलोक बैकुंठ से धरती पर आए हैं, केवल उन्हीं में श्रीभगवान की प्राप्ति होगी। वही भगवान की  शरण में आएंगे,  वही पवित्र भक्तगण अनंत  युग में  जाएंगे एवं  भगवान के शासन में आनंद  लेंगे। अनंत  सुख का भोग करेंगे, दूर-दूर तक दुःख और कष्ट का नामो निशान नही होगा। जो गोपवंशी, यदुवंशी, ऋषिवंशी, प्रभु के परिवार से हैं, सम्पूर्ण  विश्व एवं भारत के  कोने-कोने में हैं, उन लोगों के लिए हर्षोल्लास  का समाचार है कि प्रभु का अवतरण हो चुका है। कोई ज्ञान, बुद्धि या कथा के द्वारा भगवान तक नही पहुंच पायेगा यह शास्त्र में स्पष्ट वर्णित है। केवल निश्छल व निर्मल भक्ति के द्वारा भक्तों को अनुभव होगा। एक करोड़ लोगों  में एक भक्त को ही प्रभु की अनुभूति  होगी और उसे  पूर्ण विश्वास हो जाएगा कि प्रभु धरती पर आ चुके हैं। जो मूल्यवान समय को नही समझ पाता है, जो जानकर  भी मूल्यवान समय को नष्ट करता है, और अंत समय भी उनसे मुह फेर लेता है उसे प्रभु के दर्शन नही होंगे। भगवत प्राप्ति का सबसे बड़ा साधन  भक्ति ,समर्पण, विश्वास ,त्याग और अनुभूति  ही होगा।

 

                                     “जय जगन्नाथ”