त्रिसंध्या-सुधर्मा महा-महा संघ

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           * सुधर्मा महा- महा संघ *

 

                     ।। जय श्री माधब ।।    

 

भगवान कल्कि राम श्री श्री श्री सत्य अनंत माधव  को प्राप्त करने के लिए प्रभु के दिए हुए पाँच महान वाणियों का पालन करें :-

 

१. बात मानना सीखिए

२. प्रतीक्षा करना सीखिए  

३. प्रेम करना सीखिए  

४. उपवास करना सीखिए

५. सत्य बोलना सीखिए

 

                -:सत्संग:-

 

कार (३बार)

भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।। (३बार)

 श्री सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम: ।। [श्री कृष्णाय वयं नम:]  (३बार)

 

 सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ।।

 

 शरणागत दिनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्यार्त हरे देवी नारायणी नमोस्तुते ।। [नारायणी नमोस्तुते]  (३बार)

 

गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः ।

गुरूर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ।।

 

अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया ।

चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।

 

अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।

तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ।। [तस्मै श्रीगुरवे नमः]  (३बार)

 

          * श्रीदशावतारस्तोत्रम् *

 

प्रलय पयोधि-जले धृतवान् असि वेदम् ।

विहित वहित्र-चरित्र मखेदम् ॥

केशव धृत-मीन-शरीर, जय जगदीश हरे ॥१॥स्वामी जय जगदीश हरे..

क्षितिरति-विपुलतरे तव तिष्ठति पृष्ठे ।

धरणि- धरण-किण चक्र-गरिष्ठे ॥

केशव धृत-कच्छप-रूप जय जगदीश हरे ॥२॥स्वामी जय जगदीश हरे..

वसति दशन-शिखरे धरणी तव लग्ना ।

शशिनि कलंक-कलेव निमग्ना ॥

केशव धृत-शूकर रूप जय जगदीश हरे ॥३॥स्वामी जय जगदीश हरे..

तव कर-कमल-वरे नखम्-अद्भुत-शृंगम् ।

दलित-हिरण्यकशिपु-तनु-भृंगम् ॥

केशव धृत-नरहरि-रूप जय जगदीश हरे ॥४॥स्वामी जय जगदीश हरे..

छलयसि विक्रमणे बलिम्-अद्भुत-वामन ।

पद-नख-नीर-जनित-जन-पावन ॥

केशव धृत-वामन-रूप जय जगदीश हरे ॥५॥स्वामी जय जगदीश हरे..

क्षत्रिय-रुधिर-मये जगद्-अपगत-पापम् ।

स्नपयसि पयसि शमित-भव-तापम् ॥

केशव धृत-भृगुपति-रूप जय जगदीश हरे ॥६॥स्वामी जय जगदीश हरे..

वितरसि दिक्षु रणे दिक्-पति-कमनीयम् ।

दश-मुख-मौलि-बलिम् रमणीयम् ॥

केशव धृत-रघुपति-वेष जय जगदीश हरे ॥७॥स्वामी जय जगदीश हरे..

वहसि वपुषि विशदे वसनम् जलदाभम् ।

हल-हति-भीति-मिलित-यमुनाभम् ॥

केशव धृत-हलधर-रूप जय जगदीश हरे ॥८॥स्वामी जय जगदीश हरे..

निन्दसि यज्ञ- विधेर् अहह श्रुति जातम् ।

सदय-हृदय-दर्शित-पशु-घातम् ॥

केशव धृत-बुद्ध-शरीर जय जगदीश हरे ॥९॥स्वामी जय जगदीश हरे..

म्लेच्छ-निवह-निधने कलयसि करवालम् ।

धूमकेतुम्-इव किम्-अपि करालम् ॥

केशव धृत-कल्कि-शरीर जय जगदीश हरे ॥१०॥स्वामी जय जगदीश हरे..

श्री-जयदेव-कवेर्-इदम्-उदितम्-उदारम् ।

शृणु सुख-दम् शुभ-दम् भव-सारम् ॥

केशव धृत-दश-विध-रूप जय जगदीश हरे ॥११॥स्वामी जय जगदीश हरे..

 

             * दुर्गा- माधब स्तुति *

 

जय हे दुर्गा माधब कृपामय कृपामयी ।

दुर्गा न्कु सेबी माधब होइले मो दीअं साईं ॥ ० ॥

बहू रुपे जय दुर्गे, ब्यापी अछु सर्ब ठाबे ।

रमा उमा बाणी राधा तो छड़ा अन्य के नाहिं ॥१॥

मदन मोहन रुपे ब्यापी अछु सर्ब ठाबे ।

मोहन चित्त मोहिलू श्री सर्ब मंगला तुही ॥२॥

धर्म संस्थापने जन्म यदी ह्वन्ति नारायण ।

दुर्गा न्कु छाड़ी माधब खेलिबार शक्ति काहिं ॥३॥

माधब न्क खेल पाइं देह धरू महामायी ।

माधब न्कु पति पुत्र रुपे खेलाउछु तुही ॥४॥

माधब न्कु दुर्गा कोले जेहुं देखे बेनी डोले ।

ताहार भाग्यर कथा ब्रह्मा शिबे न जोगाई ॥५॥

जय दुर्गति नाशिनी अभिरामर जननी ।

शुभागमन करंतू माधब न्कु कोले नेई ॥६॥

 

         * श्री विष्णो: षोडशनामस्तोत्रम् *

 

औषधे चिन्तयेत् विष्णुं भोजने च जनार्दनम् ॥१॥

शयने पद्मनाभं च विवाहे च प्रजापतिम् ॥२॥

युद्धे चक्रधरं देवं प्रवासे च त्रिविक्रमम् ॥३॥

नारायणं तनुत्यागे श्रीधरं प्रियसंगमे ॥४॥

दुः स्वप्ने स्मर गोविन्दं संकटे मधुसूदनम् ॥५॥

कानने नारसिंहं च पावके जलशायिनम् ॥६॥

जलमध्ये वाराहं च गमने वामनं चैव ॥७॥

पर्वते रघुनन्दनं सर्व कार्येशु माधवम् ॥८॥

 

षोडशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्

सर्वपाप विनिर्मुक्तो विष्णुलोके महीयते ॥

 

             * माधब-माधब गीत *

 

माधब माधब माधब ॥ श्री सत्य अनंत माधब ॥१॥

श्री सत्य अनंत माधब ॥ श्री सत्य अनंत माधब ॥२॥

माधब माधब माधब ॥ ओ३म् सत्य अनंत माधब ॥३॥

ओ३म् सत्य अनंत माधब ॥ ओ३म् सत्य अनंत माधब ॥४॥

माधब माधब माधब ॥ श्री सत्य अनंत माधब ॥५॥

श्री सत्य अनंत माधब ॥ श्री सत्य अनंत माधब ॥६॥

माधब माधब माधब ॥ श्री सत्य अनंत माधब ॥७॥

 

             * कल्कि महामंत्र *

 

राम हरे कृष्ण हरे राम हरे कृष्ण हरे, राम हरे कृष्ण हरे अनंत माधब हरे ॥१॥

राम हरे कृष्ण हरे राम हरे कृष्ण हरे, राम हरे कृष्ण हरे अनंत माधब हरे ॥२॥

राम हरे कृष्ण हरे राम हरे कृष्ण हरे, राम हरे कृष्ण हरे अनंत माधब हरे ॥३॥

राम हरे कृष्ण हरे राम हरे कृष्ण हरे, राम हरे कृष्ण हरे अनंत माधब हरे ॥४॥

राम हरे कृष्ण हरे राम हरे कृष्ण हरे, राम हरे कृष्ण हरे अनंत माधब हरे ॥५॥

राम हरे कृष्ण हरे राम हरे कृष्ण हरे, राम हरे कृष्ण हरे अनंत माधब हरे ॥६॥

राम हरे कृष्ण हरे राम हरे कृष्ण हरे, राम हरे कृष्ण हरे अनंत माधब हरे ॥७॥

 

           * जयकारा *

 

निर्देश:- सभी अपने स्थान पर खड़े होकर अपना हाथ उपर उठा कर प्रभु जी के लिए जयकारा करें-

 

त्वमेव माता च पिता त्वमेव

त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव

त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥

 

ॐ नमो ब्रह्मण्य देवाय गोब्राह्मण हिताय च ।

जगत् हिताय कृष्णाय गोविंदाय नमो नमः ॥

 

ॐ अनंत कोटि विश्व ब्रह्माण्ड नाथ परमब्रह्म नारायण महाविष्णु भगवान कल्किराम श्री श्री श्री सत्य अनन्त माधब  महाप्रभु जी की जय । [३बार]

जय माँ महालक्ष्मी जी की – जय । [३बार]

जय माँ वैष्णो देवी जी की – जय । [३बार]

जय सर्व देवी-देवताओं की-  जय । [३बार]

सत्य- सनातन धर्म की  जय । [३बार]

सुधर्मा महा-महा संघ की  जय । [३बार]

 

हे प्रभु ! शीघ्र से शीघ्र भक्तों का एकत्रीकरण हो-  बोलो आनंदे एक बार हरि-हरि ।[३बार]

हे प्रभु ! शीघ्र से शीघ्र पृथ्वी पर सत्य, प्रेम, दया,  क्षमा और शांति की स्थापना हो-  बोलो आनंदे एक बार हरि-हरि ।[३बार]

हे प्रभु ! सम्पूर्ण विश्व में सनातन धर्म की स्थापना  हो-  बोलो आनंदे एक बार हरि-हरि । [३बार]

 

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महाप्रभु पूजन विधि-

 

तिलक (चन्दन) एवं पुष्प (फूल) चढ़ाने का मंत्र :-

 

प्रभु जी का सोलह नाम लेना है 

 

धूप मंत्र:-

 

गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः ।

गुरूर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

 

दीप मंत्र:-

 

शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्

विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।

लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्

वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥

 

भोग मंत्र:-

 

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं

भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।

 

आरती मंत्र:-

 

बंदे वृंदावन गुरु कृष्ण कमल लोचन,

पितांबर घनश्याम बनमाला बिराजित,

त्रीभंगी भंगिमा रूपम राधिका प्राण वल्लभ,

गोपी मंडल मध्येस्तु शोभित नंद-नंदन,

वसुदेव सुतदेव कंस चाणूर मर्द्दनम्,

देवकी परमानंद कृष्ण वंदे जगतगुरूम् ।।

 

धर्मसंस्थापना के परिस्थिति में भगवान कल्कि का निर्देश:-

 

❖ धर्मसंस्थापना के परिस्थिति में भगवान कल्कि के निर्देशानुसार हमें घर में रह कर क्या यह करना चाहिए :-

 

१. संसार के सभी जीवों के ऊपर दया करनी चाहिए । सभी जीवों का मांस भक्षण त्याग कर हमें सात्विकता अपनाना चाहिये। कोई प्राणी या मनुष्य को किसी तरह का कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए।

२. अनंत युग के इस समय पर सभी को माधव नाम का भजन करना चाहिए । जोर से या मन में गुनगुनाकर हम  नाम जाप कर सकते हैं।

३. सत्य, प्रेम, दया, क्षमा, और शांति–यह पांच रत्नों को सब धारण करें।

४. सभी को यथा संभव सत्संग करना चाहिए। सत्संग का अर्थ यह है कि किसी भी समय में किसी भी स्थिति में दो या दो से अधिक लोगों के द्वारा प्रभु के गुण, प्रसिद्धि, लीला और अनुभव का वर्णन करना।

५. प्रभु के सोलह नाम और दशावतार स्तोत्र का पाठ करें और त्रि-संध्या करें। त्रिसंध्या यानि सुबह, दोपहर और शाम में स्तुति और पाठ करना है।

६. भगवान कल्कि द्वारा दिए गए महामंत्र का रोज भजन करें।

७. सभी को धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए।

८. हम किसी भी जाति, धर्म और वर्ण से ऊपर रहकर सत्संग कर सकते हैं।

९.  हमें मैं-मेरा, तुम-तुम्हारा नहीं करना है इसका पालन करने से स्वयं का अहंकार चला जाता है।

१०. सभी लोग अपने घर या निवास स्थान पर श्रीमद्भागवत-महापुराण का प्रतिदिन पाठ करें। अतिरिक्त समय में भजन, कीर्तन, पुराण, शास्त्र, भविष्य मालिका और प्रभु जी के बारे में चर्चा करें।

११. सभी महिलाओं को माँ कह कर और सभी पुरुषों को भाई कह कर संबोधन करें।

१२. भोजन करने से पहले प्रभु को समर्पित करें।

१३. भोजन करते समय सावधान रहे, कोई भी भोजन व्यर्थ ना हो।

१४. यदि कोई महाप्रभु (भगवान) के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो नीचे दिए गए मोबाइल नंबर पर संपर्क करें।

 

संपर्क सूत्र –

मोहन भाई +91-9438723047