आइये जानते हैं भविष्य मालिका को प्रमाणित करते शास्त्रों के प्रमाण-
“जथा चंद्र तथा तिस्य ब्रहस्पतिस्य बृहस्पति एक रासो मनुष्यन्तितदा भवितत कृतं।“
अर्थात –
चंद्र , सूर्य व बृहस्पति तीनों एक ही समय एक स्थान पर पुष्य नक्षत्र में समागम होने पर सतयुग के आगमन की पूर्व सूचना के रूप में श्रीमद्भागवत में स्पष्ट वर्णित है। ऐसा योग सन 1943 में अगस्त माह के दिनांक एक रविवार के दिन बना था एवं उसी वर्ष अष्टग्रहकूट (अष्टग्रही योग) भी हुआ था।
चतुर्युग की गणना के ग्रंथ जिसे ब्रह्माजी के पुत्र मनु ने स्वयं लिखा था उसमें भी इसका प्रमाण स्पष्ट मिलता है जो इस प्रकार से लिखा है..
“चतुर्यहु सहस्त्राणि बरसाणं तत युगम कृत
तस्य पावक्छती संध्या संध्या सस्चथा बुधः”
अर्थात –
चार हजार चार सौ वर्षों के पश्चात संधिकाल का आरंभ होगा। इसका तात्पर्य है कि युग गणना में युग को जितने समय का भोग होना है उसके सतांश (संध्याबेला) भाग को शास्त्रों के अनुसार युग गणना में सम्मिलित किया जाता है।
4400 वर्ष कलियुग के और 400 वर्ष कलियुग के संध्याकाल का कुल योग 4800 वर्ष है जिसके पश्चात कलियुग का अंत होगा। उड़ीसा के जगन्नाथ पंजिका के अनुसार वर्तमान में कलियुग का 5124 वर्ष चल रहा हैं। दक्षिण भारत की पंजिका के अनुसार वर्तमान कलियुग का 5122 वर्ष चल रहा है। अतः कलियुग का अंत हो चुका है।
भगवान कल्कि ने उड़ीसा की पवित्र भूमि पर धरावतरण कर लिया है और वर्तमान समय में धर्म संस्थापना भी अपनें पथ पर अग्रसर है। निकट भविष्य में मानव जाति भयानक विनाशलीला को अपने नेत्रों से देखेगी।
“जय जगन्नाथ”