महापुरुष अच्युतानंद दास जी के द्वारा लिखी मालिका की कुछ दुर्लभ पंक्तियाँ व तथ्य-
“तुम्भ सेवा काहू जाणीवी प्रभु जगोजी बन,
प्रकुति माने भुलाइले सुधारस आप्यानो,
राखिले रख जगन्नाथे नाही अन्य रखंता,
तुम्भे ना रखिले भासिली प्रभु सुणि नाहुओचिंता।”
अर्थात –
भक्त कहता है भगवान से कि हे! प्रभु आपकी सेवा करने की क्षमता मुझ अधम में नहीं है। आप श्री भगवान की सेवा तो स्वयं ब्रह्माजी व महादेव भी करने में असमर्थ रहे। समस्त ब्रह्मांड के सभी देवतागण भी एकत्रित होकर आपकी सेवा करने में असक्षम ही रहे।
आदिकाल में जब आप ने अपने पादपद्म को स्वर्गलोक के अधिग्रहण हेतु स्थिर किया था, उसी समय ब्रह्मांड को चीरकर आपके अभय पादपद्म ब्रह्मलोक तक पहुंच गये थे। आपकी यह अद्भुत लीला को जानकर ब्रह्माजी ने आप श्रीभगवान की स्तुति की थी और अपनी अंतर इच्छा को आपके सम्मुख प्रकट किया था, कि “हे! दीनबन्धु यदि आपकी आज्ञा हो, तो ब्रह्मलोक को आये आपके श्रीचरणों को मैं एक बार धो लूँ तो मेरा सम्पूर्ण जीवन सार्थक हो जाएगा”। श्री भगवान की आज्ञा पाकर ब्रह्माजी ने अपने कमण्डल में स्थित माँ गंगा के पवित्र जल के द्वारा प्रभु के पादपद्म को धोने की चेष्टा की पर माँ गंगा भी प्रभु के सम्पूर्ण चरणों को धो नहीं पाई। जगतपति के श्री चरणों की छोटी उंगली के कोण पर माँ गंगा अंतर्ध्यान (विलुप्त) हो गई।
ब्रह्माजी के द्वारा श्री चरणों को धोने की इस घटना के समय भगवान शंकर ने भी ब्रह्माजी के द्वारा चरण धोने पर चरणामृत पान करने की अपनी इच्छा प्रकट की थी। परंतु गंगाजी के द्वारा चरणों के ना धुल पाने के कारण, ना ही ब्रह्माजी और ना ही महादेव की इच्छा पूर्ण हो पाई थी। जिन महाविराट त्रिभुवनपति की सेवा स्वयं ब्रह्मा या महादेव भी ना कर पाए उन भव भयहारी मधुसूदन भगवान की सेवा भक्त भला क्या करेंगे।
महापुरुष अच्युतानंद जी इस विषय पर पुनः लिखते हैं…
“तुम्भ सेवा कहूँ जाणीवी तुम्भ वृतयंक सेवा,
सेवार सिमानो जाणोई उड़ी वईलियोवा।”
अर्थात –
भक्त अच्युतानंदजी प्रभु से कहते हैं, कि हे! प्रभु आपकी सेवा कर पाना हमारे लिए सम्भव नहीं है। आपका शरीर तो अनन्त कोटि ब्रह्मांडों में परिव्याप्त है। मुझ अभागे के ऐसे अच्छे कर्म भी नहीं और ना ही मैं विदुरजी और केवट या माँ कुब्जा की तरह भाग्यवान ही हूँ कि आपके चरणों को धो पाऊं। अब तक केवल त्रेता में केवट और द्वापर में विदुर और माँ कुब्जा को ही श्रीभगवान के पादपद्म को धोने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
वर्तमान कलियुग में भक्तों के लिए कोई सेवा नहीं है। केवल दीन, दुखी, जीव, जंतुओं को कुछ दान करें। निरंतर प्रभु के नाम का संकीर्तन करे। सत्संग करें व आपके सानिध्य में जो भी सज्जन आये उन्हें सही मार्ग दिखाएं। भगवान कल्कि के नाम का सम्पूर्ण विश्व में प्रचार प्रसार करें। भगवान किसी से कुछ नहीं चाहते हैं। ना भगवान को किसी वस्तु की आवश्यकता है, और ना ही कभी आवश्यकता होगी। ना ही प्रभु ने राम अवतार या कृष्ण अवतार में किसी से कुछ लिया था, और न ही वर्तमान में कुछ लेंगे।
भक्तों के पास भक्ति, समर्पण, और नाम प्रचार व दान के अतिरिक्त भगवान को देने के लिए कुछ भी नहीं है। भविष्य में जैसे-जैसे धर्मसंस्थापना के कार्य आगे बढ़ते जाएंगे वैसे ही पंचभूत प्रलय भी उग्र होता जाएगा। भयंकर बारिश होगी, आकाश से उल्कापात होगा, एक-एक गांव, शहर, वन जलकर राख हो जाएंगे, समुद्र अपनी सीमा को लांघ कर जल प्रलय का तांडव मचाएगा। समुद्र से उठे कई भयंकर चक्रवात भूखंड पर विध्वंस करेंगे, भूकंप के द्वारा भी विनाश होगा, रोग, महामारी, भुखमरी, साम्प्रदायिक हिंसा, अविश्वास, और पति-पत्नी में कलह होगा। वर्तमान समय में पति-पत्नी स्वार्थी और कामनावासी हो गए हैं। यह सभी आनेवाले विनाश के लक्षण हैं।
“जय जगन्नाथ”