भविष्य मलिका ग्रंथ क्या है ?
महान लेखक कौन हैं?
यह जगन्नाथ संस्कृति से कैसे संबंधित है?
द्वापरयुग में श्री सुदामा जी श्री कृष्ण के ‘परम सखा’ (सर्वोत्तम मित्र) थे। श्री कृष्ण ने एक बार उनसे कहा था कि “कलियुग के अंत में, मैं एक सामान्य इंसान के रूप में ओडिशा में जन्म लूंगा। कलि के प्रभाव के कारण सभी लोग मुझे एक ‘साधारण मनुष्य’ (एक सामान्य व्यक्ति) के रूप में देखेंगे।
कलियुग में मेरे भक्त मेरी शक्तियों को प्रत्यक्ष रूप से तभी देखेंगे जब सही समय आएगा ? पहले तो मेरे भक्त समझ नहीं पाएंगे कि भगवान कहां हैं ? कलियुग का अंत कब होगा ? भगवान कैसे अवतार लेंगे ? इसलिए कलयुग में मेरे जन्म के बारे में और मेरे भक्तों को धर्म का सही मार्ग दिखाने के लिए सुदामा जी आप एक ‘भविष्य ग्रंथ‘ लिखिए।
इसके लेखक कौन हैं?
सुदामा जी का जन्म ओडिशा में महापुरुष अच्युतानंद के नाम से हुआ था। इनको और इनके जैसे पांच लोगों को मिलाकर सम्मिलित रुप से पंचसखा कहते हैं। ये पंचसखा हर युग में भगवान के साथ रहते हैं।
सतयुग में ये नारद, मार्कण्डेय, गर्ग, स्वम्भू और कृपाचार्य थे। त्रेता युग में नल,नील,जांबवंत,सुसेन और हनुमंत थे। द्वापर युग में दाम,सुदाम,सुबल,सुबाहु और सुभक्ष थे। ये ही पंचसखा कलियुग में अच्युतानंद और अन्य चार भक्तों के रूप में जन्म लिए थे।
इस युग में भगवान के निर्देशानुसार महापुरुष अच्युतानंद ने 1 लाख 85 हजार शास्त्रों की रचना की। और उन शास्त्रों में, उन्होंने दुनिया की स्थितियों के बारे में, विज्ञान की, और भारत और अन्य देशों की आर्थिक और भौगोलिक स्थितियों के बारे में लिखा है जो आज के समय में और भविष्य में भी लगभग 600 साल पहले होने वाली हैं।
धर्मसंस्थापन (दुनिया में सनातन धर्म की स्थापना) का कार्य कैसे होगा, कलियुग के अंत में जलवायु परिवर्तन कैसे होगा, कौन भारत और अन्य देशों पर राज करेगा, जो धर्म संस्थान के लिए काम करेगा, क्या होगा भक्तों को मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग, कलियुग के अंत में भगवान विष्णु कहां अवतार लेंगे और भी बहुत कुछ। इन्ही शास्त्रों को सम्मिलित रूप से “भविष्य मलिका” कहते हैं। यह अपने आप में और भी कई शास्त्रों का संग्रह है। इसमें कल्कि अवतार के बारे में बहुत सारी जानकारी है और भी बहुत सारी जानकारीयां हैं जो ओडिशा में पहले ही हो चुकी हैं।
सतयुग में पंचसखा थे- नारद, मार्कंडेय, गर्ग, स्वयंभू और कृपाजन। कलियुग में नारद शिशुानंत थे, कलियुग में गर्ग (सतयुग से) जसवंत थे, कलियुग में मार्कंडेय (सतयुग से) बलराम दास थे और महापुरुष अच्युतानंद, जो सत्ययुग में धर्मसंस्थाप में भगवान विष्णु के साथ थे, कृपाजन थे।
त्रेतायुग में पंचसखों का नाम नल, नील, जामवंत, सुषेण, हनुमंत रखा गया। कलियुग में सुषेण बलराम दास थे और कलियुग में जामवंत जसवंत थे। कलियुग में नील शिशुानंत और नल महापुरुष अच्युतानंद थे।
द्वापरयुग में पंचसखा थे- दाम, सुदाम, सुबाल, सुबाहु और श्रीबाक्ष। कलियुग में पंचसखों के नाम हैं- अच्युत, अनंत, जसवंत, जगन्नाथ दास और बलराम दास।
यह जगन्नाथ संस्कृति से कैसे संबंधित है ?
ओडिशा में जगन्नाथ संस्कृति का चलन आदि काल से है। ध्यान रहे तथ्य है कि जगन्नाथ जी की मूर्ती दारू ब्रम्ह की मूर्ती है और उसमे भगवान कृष्ण की आत्मा का निवास है। इसलिए जगन्नाथ क्षेत्र को मर्त्य बैकुंठ भी कहा जाता है। अब चूँकि ये सभी पंचसखा ओडिसा में जन्म लिए और उन्होंने और जगन्नाथ संस्कृति को मानने वाले थे, उड़िया में अपने ग्रन्थ की रचना किये इसलिए इनके भविष्य मालिका ग्रन्थ में जगन्नाथ संस्कृति का समावेश है।