महापुरुष श्री अच्युतानंद दास जी के द्वारा लिखी मालिका की कुछ दुर्लभ पंक्तियाँ व तथ्य-
“एहि घोर कली लीला भली-भली प्राणी हेबे पथ बँणा।”
अर्थात –
कई चरणों में विभिन्न प्रकार से महाप्रभु की लीला होगी, परंतु साधारण मनुष्य इसे अपने ज्ञान के आधार पर समझ नहीं पाएंगे। कलियुग का अंत हो चुका है, अगर यह एक सच्चाई नहीं है, तो आज सम्पूर्ण विश्व की स्थिति इस तरह से खराब क्यों हो रही है?
जब धर्म संस्थापना होती है, जब युग के अंत का समय होता है, उसी समय मनुष्य समाज में बहुत से परिवर्तन होते हैं। महामारी, रोग, हिंसा, दुर्घटना, युद्ध, आपदा, यह सब अचानक से अपना पैर पसारने लगते हैं। इस तरह की घटनाएं समस्त संसार का अधिग्रहण करने लगती हैं। भय व अवसाद का वातावरण बनने लगता है। प्रायः हर तरफ अशान्ति होने लगती है।
त्रेता में रावण की मृत्यु से पूर्व, और द्वापर में क्रूर कंस की मृत्यु से पूर्व मनुष्य समाज की जो परिस्थिति थी ठीक वैसी ही परिस्थिति मनुष्य समाज की आज वर्तमान समय में है। इसकी पुष्टि वाल्मीकि रामायण में वाल्मीकि जी के द्वारा भी की गई है।
रावण और कंस की मृत्यु के पश्चात वातावरण स्वयं स्थिर होने लगा। मंद मलय पवन बहने लगी। सूर्य की रौशनी शीतल होने लगी। समुद्र का जल मीठा (पीने लायक) हो गया। रोग महामारी समाप्त हो गई। सब ने यौवनावस्था को प्राप्त किया। सुख शांति पुनः अपना पैर पसारने लगी।
इसलिए आज विश्व में जो भी अस्थिरता है वह केवल कल्कि लीला अर्थात विनाश लीला का ही एक अंग है। यह समय बीतने के साथ और भी उग्र होता जाएगा व 2029 से 2030 तक यह धर्म संस्थापना का कार्य यूँ ही चलता रहेगा। मनुष्य समाज मे जन्म होने के कारण हमें भी यह देखना पड़ेगा।
महापुरुष पुनः मालिका में लिखते हैं-
“माया अन्धकारे गुड़ी रहीथीबे अखिथाई सीजेकणा।”
अर्थात –
मनुष्य लोग माया में डूबे रहेंगे, उन्हें प्रत्येक वर्ष विभिन्न प्रकार से चेतावनी मिलती रहेगी। मनुष्य समाज के गर्व, अहंकार, छमता, अर्थ, सुख, शांति व दम्भ के चक्रव्यूह में फंसे होने के कारण यह भगवदवाणी उनके कानों तक नही पहुंचेगी।
महापुरुष पुनः कहते हैं-
देखने वाले तो देख सकते हैं, परंतु जो नेत्रों के रहते भी अंधे हैं वो देख नही पाएंगे। जो अर्थ, गौरव और अपनी क्षमता के वजह से अंधे हैं उनके नेत्र होते हुए भी वो इन परिवर्तनों को देखकर भी समझ नहीं पाएंगे।
महापुरुष अच्युतानंद जी पुनः लिखते हैं
“श्रीअच्युत वाणी पत्थरर गार पर्वते फूटिब कईं,
पूर्ब सूर्जवा पश्चिम कुजिबे मवचन सत्य एहिं।”
अर्थात –
महापुरुष पूर्ण दृढ़ता के साथ प्रतिपादन कर यह लिख रहे हैं की मालिका के प्रत्येक शब्द भगवान विष्णु निराकार की वाणी है, यह अटल सत्य है। पूर्व से उदय होने वाला सूर्य पश्चिम से उदय हो सकता है, पर मालिका में लिखे एक भी शब्द मिथ्या नहीं होंगे।
महापुरुष चक्रामड़ाड़ मालिका में इस प्रकार से पुनः लिखते हैं-
“मला-मला डाक सात थर हेब,
थोके जिबे रेणु होई ज्ञानीजन माने,
घबरा होईबे अज्ञानी थिबे ताकाहिं लीला उदय हेबो,
भक्तंक लीला भारी होई लीला उदय हेबो।”
अर्थात –
मरा-मरा शब्द सुन-सुनकर लोग थक जाएंगे। ज्ञानी लोग भी घबराएंगे। सम्पूर्ण विश्व में प्रतिवर्ष एक बार अर्थात सात वर्षों में कुल सात बार मरा-मरा शब्द गूंजेगा। बहुत से लोगों की मृत्यु होगी। जो झूठे साधु संत हैं, जो धर्म का व्यवसाय करते हैं वो लोग भयभीत हो जाएंगे। उन्हें समझ नही आएगा यह क्या हो रहा है। केवल सच्चे भक्तों को इसका ज्ञात होगा कि विश्व में जो भी हो रहा है वो केवल प्रभु की लीला है। ये सब कुछ धर्मसंस्थापना का हिस्सा है।