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Bhagwat Mahapuran Chapter 1-4
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भविष्य मालिका

कलियुग के पूर्ण होने के संबंध में श्री जगन्नाथ के क्षेत्र से मिले संकेत

Satyanarayan SrivastavaBy Satyanarayan SrivastavaDecember 3, 2022Updated:April 22, 20251 Comment15 Mins Read
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महात्मा पंचसखाओ ने भविष्य मालिका की रचना भगवान निराकार जगन्नाथ जी के निर्देश से की थी। भविष्य मालिका में मुख्य रूप से कलियुग के अंत  के विषय में सामाजिक, भौतिक और भौगोलिक परिवर्तनों के लक्षणों का वर्णन किया गया है। शास्त्रों के लेखन के अतिरिक्त श्रीजगन्नाथ जी के मुख्य क्षेत्र को आदि वैकुण्ठ (मर्त्य वैकुण्ठ) बताया गया है। 5000 वर्ष कलियुग के बीतने के उपरांत पंचसखाओं ने भक्तों के मन से  संशय को दूर करने के लिए बताया कि, भगवान की इच्छानुसार श्री जगन्नाथ जी के नीलांचल क्षेत्र से विभिन्न संकेत प्रकट होंगे और भक्तों को उन संकेतों का अनुकरण करके कलियुग की आयु के अंत और भगवान कल्कि के अवतरण के विषय में ज्ञात हो जाएगा ये सभी तथ्य नीचे दिए गए छंद से हम समझ सकते हैं :-

“दिव्य सिंह अंके बाबू सरब देखिबु,

छाड़ि चका गलु बोली निश्चय जाणिबू

नर बालुत रुपरे आम्भे जनमिबू “

                                                                (गुप्त ज्ञान- अच्युतानंद दास)

 

महात्मा अच्युतानंद जी ने उपरोक्त श्लोक में महाप्रभु श्री जगन्नाथ के प्रथम सेवक और सनातन धर्म के ठाकुर राजा (दिव्य सिंह देव चतुर्थ) के विषय में वर्णन किया हैं। महापुरुष ने इसका भी उल्लेख किया की जगन्नाथ  क्षेत्र में महाराजा इंद्रद्युम्न की परंपरा के अनुसार, अलग-अलग समय में अलग-अलग राजा जगन्नाथ के क्षेत्र के प्रभारी थे। जब चौथे राज्य  दिव्यसिंह देव उपरोक्त वर्णित राजाओं के प्रतिनिधि के रूप में कार्यभार संभालेंगे, तो कलियुग के  5000 वर्ष  बीत चुके होंगे। इससे महापुरुष अच्युतानन्द ने दो बातें सिद्ध की, एक ओर तो चौथे दिव्य सिंह देव राजा के रूप में पदभार संभालेंगे, दूसरी बात यह है कि 5000 वर्ष कलियुग का बीत चुका है और आज कलियुग का 5125वां  वर्ष  चल रहा है।

महात्मा अच्युतानंद ने मालिका में इसकी सत्यता प्रकट की और वर्णन किया कि जब श्रीक्षेत्र के राजा चौथे दिव्य सिंह देव महाराज सत्ता में होंगे (जो वर्तमान में हैं) वही कलियुग के अंत का प्रमाण होगा। पुनः महापुरुष  अच्युतानंद जी ने उपरोक्त पंक्तियों में समझाया कि जब चर्तुथ दिव्य सिंह देव राजा उड़ीसा के श्रीक्षेत्र में शासन करेंगे तो भगवान जगन्नाथ कल्कि अवतार ग्रहण करेंगे और भगवान जगन्नाथ मानव शरीर धारण करके कल्कि अवतार लेंगे तथा धर्म संस्थापना करेंगे।

महापुरूष अच्युतानंद जी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि चौथे दिव्य सिंह देव के समय में, कलियुग की आयु पूर्ण हो जायेगी एवं भगवान जगन्नाथ कल्कि के रूप में एक ब्राह्मण के घर में शिशुरुप में जन्म लेंगे । महापुरुष अच्युतानंदजी  ने अपनी अष्ट गुजरी में समझाया:-

 “पूर्व भानु अबा पश्चिमें जिब अच्युत बचन आन नोहिब ।

पर्वत शिखरे फुटिब कईं अच्युत बचन मिथ्या नुंहइ।

ठु ल  सुन्यकु मु करिण आस ठिके भणिले श्री अच्युत दास “

व्याख्या :-

महापुरुष अच्युतानंद जी मलिका की पवित्रता और सच्चाई की घोषणा बज्र कंठ से करते हैं।  भक्तों के मन में भक्ति और विश्वास को पुनः जागृत करते हुए कहते हैं कि सूरज पश्चिम दिशा में उदित हो सकता है, पर्वत के शिखर पर कमलपुष्प खिल सकता है किन्तु उनके द्वारा लिखी हुई वाणी असत्य नहीं होगी।

“दिव्य केशरी राजा होइब तेबे कलियुग सरिब

चतुर्थ दिब्य सिंह थिब से काले कलियुग थिब”

व्याख्या:-

महापुरुष अच्युतानंद ने उपरोक्त पंक्ति में लिखा है कि जब उड़ीसा के श्रीक्षेत्र में राजा ‘दिव्य सिंह देव’ चतुर्थ शासन सम्हाल रहे  होंगे, तो कलियुग का अंत हो चुका होगा  एवं सतयुग की शुरुआत हो चुकी  होगी, परंतु  सतयुग का कहीं कोई भी प्रभाव दृष्टिगोचर नहीं होगा। पुनः महात्मा अच्युतानंदजी ने अपनी वाणी से पुनः-पुनः समर्थन किया है। महापुरुष जगन्नाथदासजी माँ राधारानी की हँसी से अवतरित हुए थे (उनके एक अन्य सखा) ने भी उनकी वाणी का समर्थन किया है।

“पुरुषोत्तम देब राजान्क ठारु , उनबीन्स राजा हेबे सेठारु,

उनबीन्स राजा परे राजा नांहि आउ ,अकुली होइबे कुलकु बोहु “। 

उपरोक्त पंक्तियों में महापुरुष  श्री जगन्नाथ दास जी ने लिखा है कि इस जगन्नाथ क्षेत्र के पहले राजा श्री पुरुषोत्तम देव होंगे। सबसे पहले राजा श्री पुरुषोत्तमदेव सहित 19 राजा मंदिर के शासन के लिए उत्तरदायी होंगे।

वर्तमान समय में मालिका की बात सत्य हो रही है और 19 वें राजा के रूप में श्री दिव्य सिंह देव चतुर्थ इस दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं और साथ ही महापुरुष श्रीजगन्नाथदास ने ये भी लिखा है कि 19 वें राजा श्री दिव्य सिंह देव चतुर्थ होंगे और उनका कोई पुत्र नहीं होगा। मालिका की वाणी को सत्य मान कर आज महाप्रभु के भक्त इसको प्रमाणिक मान रहे हैं। 600 वर्ष पूर्व जो उन  महापुरुषों ने  लिखा वह सबकुछ आज निरंतर घटता जा रहा  है । अतः ये सिद्ध होता  कि कलियुग  समाप्त हो गया है और धर्म संस्थापना का समय एवं गुप्त कार्य चल रहा है। महापुरुष अच्युतानंद जी ने भविष्य  मालिका में रचना की  है:-

“चुलरु पथर जेबे ख़सिब सूत , ख़सिले अंला बेढ़ा रु हेब ए कलि हत।”

पुनः श्रीजगन्नाथ के क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भविष्यमालिका ग्रंथ में महापुरुष अच्युतानंद दास जी ने भक्तों को सूचित करने के लिए लिखा है  कि जब श्रीजगन्नाथ धाम के मुख्य मंदिर से पत्थर गिरेगा तब समझना कि कलियुग का अंत हो गया है महापुरुष का यह वचन अब सत्य सिद्ध हो गया है । गत दिवस 16.6.1990 को श्री मंदिर के आमला बेढ़ा से एक पत्थर गिरा था जिसकी जांच के लिए केंद्रीय बजट विभाग द्वारा एक समिति गठित की गई, किन्तु वैज्ञानिकों को आजतक पता नहीं चल पाया कि इतना बड़ा पत्थर (1 टन से अधिक) मंदिर में कहाँ से आया और  कैसे गिर गया? ये वैज्ञानिकों के लिए एक आश्चर्यजनक के घटना के साथ शोध का विषय बना हुआ है । सभी महात्माओं और ऋषियों की वाणी सत्य सिद्ध हुई  है, तथा इस रूप में भक्तों के लिए संकेत था। जगन्नाथ मंदिर के भीतर आमला बेढ़ा से पत्थर का गिरना कलियुग के अंत का प्रमाण है।

महापुरुष अच्युतानंद जी ने उनके भविष्य मालिका ग्रंथ गरुड़ संवाद में उल्लेख किया है कि एक दिन भगवान के प्रमुख भक्त विनितानंदन गरुड़ ने महाप्रभु से पूछा कि “भगवन, आपने चारों युग में अवतार लिया है और कलियुग के अंत में आप कल्कि अवतार लेंगे तो चार युगों के भक्तों और भगवान का मिलन होगा। जब आप नीलांचल छोड़ेंगे, दारू ब्रह्म से साकार ब्रह्म बनेंगे, तो भक्तों को नश्वर वैकुंठ से क्या लक्षण दिखाई देंगे, जिससे भक्तों को विश्वास हो कि आपके कल्कि अवतार का समय आ गया है और भक्त मालिका का अनुसरण करें और आपका आशीर्वाद प्राप्त करें?” महापुरुष अच्युतानंद ने भविष्य मालिका में लिखा है:-

 “बड़ देउल  कु आपणे जेबे तेज्या करिबे,

कि कि संकेत देखिले मने प्रत्ये होइबे ।”

उपरोक्त पंक्तियों का अर्थ है कि:-

जब भगवान नीलाचल छोड़ देंगे, तो भक्तों को एक संकेत मिलेगा उसे  देखकर ही विश्वास होगा। तब भगवान श्री कृष्ण कह रहे हैं:-

“गरुड़ मुखकु चाँहिण कहुचंति   अच्युत,

क्षेत्र रे रहिबे अनंत बिमला  लोकनाथ।”

इन पंक्तियों में भगवान ने गरुड़ से कह रहे हैं कि:-

“जब मैं नीलाचल छोडूंगा, तब मेरे ज्येष्ठ भाई बलराम नीलाचल क्षेत्र का दायित्व ग्रहण करेंगे और नीलाचल क्षेत्र के क्षेत्राधीश्वर बनेंगे,‌ शक्तिस्वरूपिणी  मां विमला और लोकनाथ महाप्रभु उस समय उस क्षेत्र में होंगे, लेकिन मैं मानव रूप में जन्म लूंगा।”

फिर गरुड़ ने पूछा कि पहला संकेत क्या होगा कि भक्त मालिका को पढ़ के समझेगा कि आपने  नीलाचल छोड़ दिया है?  पुनः महापुरुष  अच्युतानंद ने बर्णन किया है :-

“देउल रु चुन छाड़िब , चक्र बक्र होइब, माहालिआ होइ भारत अंक कटाउ थिब।”

 

उपरोक्त पंक्तियों का अर्थ ये है :- 

जब श्री जगन्नाथ जी के मुख्य मंदिर में चूने का जो लेप है उस से कुछ कुछ चूना निकल आएगा, तब श्रीजगन्नाथ मंदिर के शिखर पर लगा नीलचक्र थोड़ा टेढ़ा हो जाएगा और भारत की आर्थिक स्थिति उस समय अच्छी नहीं होगी।

उपरोक्त पंक्ति से ज्ञात होता है, जब जगन्नाथ मंदिर से चूने का लेप झड़ गया था, उस समय के प्रधान मंत्री डॉ चंद्रशेखर थे और 3000 टन सोना गिरवी रख के भारत में पैसे की कमी को पूरा किया और उसके बाद भारत के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने भारत की आर्थिक नीति में बदलाव करके आर्थिक उदारीकरण की नीति को अपनाकर स्थिति में सुधार किया। मालिका की उपरोक्त पंक्ति से सिद्ध होता है कि महापुरूष अच्युतानंद जी ने आज से 600 वर्ष पूर्व जो कहा था कि जब जगन्नाथ मंदिर से चूना निकल जाएगा तब भारत की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होगी और वह आज सिद्ध हो चुकी है। महाप्रभु श्रीकृष्ण दूसरे संकेत के विषय में बताते हैं:-

“बड़  देउल रु पथर जेबे ख़सिब पुण,

गृध्र पक्षी जे बसिब अरुण र स्तम्भेण।”

इन पंक्तियों के भावार्थ यह है कि:-

जब आमला बेढ़ा से पत्थर गिरेगा, तब सूर्य पुत्र अरुण (अरुण स्तंभ ) के ऊपर बाज पक्षी अथबा गिद्ध  बैठ जाएगा। इससे हम ये अनुमान लगा सकते हैं कि जिस समय आमला बेढ़ा  से पत्थर गिरा, उस समय अरुण स्तंभ पर शिकारी गिद्ध पक्षी भी बैठा हुआ था।

यह मालिका के लेखन में भी सिद्ध हुआ है कि हमारी शास्त्रीय परंपरा के अनुसार यदि किसी घर पर गिद्ध पक्षी बैठ जाए तो वह उस घर में रहने वाले लोगों पर आगामी संकट का संकेत होता है। उसी प्रकार श्रीजगन्नाथ मंदिर के अरुण स्तंभ पर बैठे गिद्ध पक्षी का दिखना सम्पूर्ण विश्व के मनुष्यों के लिए बड़े संकट के लक्षण हैं। अर्थात यह कलियुग के अंत और धर्म की स्थापना का पहला संकेत माना जाता है। फिर महापुरूष अच्युतानंद ने भक्त शिरोमणि गरुड़जी को बताया:-

“एही  संकेत कु जानिथा हेतु मति की नेई,

तोर  मोर भेट होइब मध्य स्थल रे जाई।”

उपरोक्त श्लोक का अर्थ है :-

गरुड़ पूछते हैं  “भगवान, जब आप कल्कि रूप में धरावतरण करेंगे, तो मैं आपसे कहाँ मिल सकता हूँ”? और कैसे मैं आपकी दर्शन प्राप्त करूंगा और स्वयं को आपकी सेवा में समर्पित करूंगा”?

महाप्रभु ने उत्तर देते हुए कहा:- “हे गरुड़, मैं आपको वहाँ मिलूँगा जहां ब्रह्मा जी का शुभ स्तंभ है, जिसे पृथ्वी का सूर्य स्तंभ माना जाता है और जिसे बिरजा क्षेत्र या गुप्त सम्भल कहा जाता है।” वही केंद्र कहलाता है। महापुरूष अच्युतानंद जी ने “हरिअर्जुन चौतिसा” में कलियुग के समाप्त होने और भगवान कल्कि के जन्म के विषय में और श्रीमंदिर में मिले अन्य संकेतों के विषय  में उल्लेख किया है।

“नीलाचल छाड़ि आम्भे जिबु जेतेबेले लागिब रत्न चांदुआ अग्नि सेते बेले

निशा काले  मन्दिररु चोरी हेब हेले, बड़ देऊलुमोहर ख़सिब पत्थर,

बसिब जे गृध्र पक्षी अरुण स्तम्भर।बतास रे बक्र हेब नीलचक्र मोर।”

उक्त पंक्तियों का अर्थ:-

उक्त पंक्तियों का अर्थ है कि महापुरुष अच्युतानन्द जी ने ये स्पष्ट किया है – भगवान कहते हैं कि  “जब मैं नीलाचल को छोड़ दूंगा, तो मेरे रत्नजड़ित  सिंहासन के ऊपर के रत्नजड़ित छत्र में पहले आग लग जाएगी और मेरे श्री मंदिर के परिसर में आधी रात को चोरी होगी, दिग्गजों से पत्थर गिरेंगे। नीलचक्र बतास (तूफान) के कारण मुड़ के  टेढ़ा हो जाएगा।” गिद्ध पक्षी मेरे अरुण स्तंभ पर बैठ जाएगा। ये सभी बातें श्रीमंदिर के  श्रीजगन्नाथ क्षेत्र में घट चुकी हैं और मालिका की वाणी पूरी तरह सत्य हुई है।  इससे कलियुग के पतन का संकेत प्राप्त हुआ है। फिर “कलियुग गीता” के दूसरे अध्याय में महापुरूष  अच्युतानंद जी श्रीजगन्नाथ क्षेत्र से विशेष संकेत के विषय में बताते हैं।

“मुंहि नीलाचल छाड़ि जिबि हो अर्जुन, मोहर भंडार घरे थिब जेते धन।

तांहिरे कलंकी लागि जिब क्षय होइ, मोहर सेवक माने बाटरे न थाई”। 

उपरोक्त पंक्ति का अर्थ:- 

अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण जी से प्रश्न किया कि ,”यदि आप नीलांचल को छोड़ दें, तो श्रीक्षेत्र में से क्या चिन्ह दिखाई देंगे, कृपया मुझे इसके विषय में बताएं”। भगवान श्रीकृष्ण उत्तर देते हुए कहते हैं, “अर्जुन, जब मैं नीलांचल को छोड़ूंगा, तो मेरे मंदिर के परिसर में स्थित भंडार गृह की ख्याति नहीं रहेगी,  जिसका अर्थ है कि खजाने यानि भण्डारगृह का धन नष्ट हो जाएगा और खजाने के प्रभारी सेवक धर्म का आचरण नहीं करेंगे। भण्डारगृह फिर से धन से रिक्त हो जाएगा।” जैसा कि अच्युतानंद जी “कलियुग  गीता” के दूसरे अध्याय में वर्णन करते हैं:-

“बहुत अन्याय करि अरजिबि धन, तंहिरे ताहांक दुःख नोहिब  मोचन ।

खाइबाकु नमिलिब  किछि न अन्टिब,मोहर बड़पण्डान्कु अन्न न मिलिब ।

मोहर बड़ देऊलु ख़सिब पत्थर, श्रीक्षेत्र राजन मोर नसेबि पयर

राज्य जिब नाना दुःख पाइबा टी सेइ, तांकू मान्य न करिब अन्य राजा केहि।”

इस पंक्ति का भावार्थ है :-

“जब मैं नीलाचल  छोड़ूंगा, तब कलियुग समाप्त हो जाएगा। जैसे ही मैं श्रीक्षेत्र  छोड़ूंगा, मेरे क्षेत्र में बहुत अन्याय होगा। और मेरे अधीन पार्षद तरह-तरह के अन्याय करके पैसा कमाएंगे, और आने वाले समय में मेरे प्रधान सेवक तो ठीक से अपना भरण-पोषण भी नहीं कर पाएंगे।” इस प्रकार के अनेक परिवर्तन श्री मंदिर में होंगे। महापुरूष अच्युतानंद ने मालिका में जगन्नाथ क्षेत्र से और एक संकेत का  उल्लेख किया है:-

“पेजनला फुटी तोर पडिब बिजुली,

से जुगे जिब की प्रभु नीलाचल छाड़ि ।”

यह पंक्तियों का अर्थ है:-

जब श्रीजगन्नाथ मंदिर के रसोई घर पर बिजली गिरेगी, तब कलियुग समाप्त हो जाएगा और श्रीजगन्नाथ नीलांचल को छोड़कर मानव रूप धारण करेंगे। पिछले दिनों श्रीजगन्नाथ मंदिर की रसोई घर पर बिजली गिरी थी और इसका प्रमाण पहले ही दिया जा चुका है। इससे यह माना जा सकता है कि श्रीजगन्नाथ जी नीलांचल को छोड़कर मानव शरीर धारण कर चुके हैं।

पुनः महापुरूष अच्युतानंद अपने ग्रंथ “चौषठि पटल” में जगन्नाथ क्षेत्र से और एक संकेत के विषय  में वर्णन करते हैं , श्री कल्पवट की महिमा और श्री कल्पवट के क्षय, कलियुग के अंत और भगवान श्रीजगन्नाथ जी के नीलांचल को छोड़कर मानव शरीर धारण करने का प्रमाण दे रहे हैं।

“से बट मुलरे अर्जुन जेहु बसिब दंडे,  मृत्यु समये न पड़िब यम राजर दंडे ।

से बट मोहर बिग्रह जंहु हेले आघात, मोते बड़ बाधा लागई सुण मघबासूत।

से बट रु खंडे बकल जेहु देब छड़ाई, मोहर चर्म छडाइला परि ज्ञांत हुअइ।”

इन पंक्तियों का भाबार्थ:-

श्रीमंदिर के अंदर स्थित कल्पवट भगवान के विग्रह के समान है। कल्पवट की तुलना भगवान के शरीर से की गई है। कल्पवट से कोई छोटा सा टुकड़ा भी तोड़ ले तो भगवान के शरीर को बहुत कष्ट होता है। अतः आज विचारणीय विषय है कि कल्पवट की शाखा बार-बार टूट रही है, इसका अर्थ है कि महापुरुष की रचना के अनुसार यदि कल्पवट की शाखा टूट जाती है, तो भगवान नीलांचल को छोड़कर मनुष्य का शरीर ग्रहण कर चुके हैं और महापुरुष अच्युतानंद ने इसी विषय में वर्णन किया है कि:-

“कल्प्बट घात हेब जेतेबेले नीलाचल छाड़ि जिबे मदन गोपाले।

कल्प्बट शाखा छिड़ि पड़िब से काले, नाना अकर्म मान हेब क्षेत्रबरे।

रूद्र ठारु उनविंश पर्यन्त सेठारे, स्थापना होइबे मोर सेवादी भाबरे।

बड़ देउलरे मुंही नरहिबी बीर, बाहार होइबि देखि नर अत्याचार।”

अर्थ :-

महापुरूष अच्युतानंद जी ने उपरोक्त पंक्तियों में उल्लेख किया है कि जब कल्पवट की शाखा टूटेगी तो मेरे क्षेत्र में बहुत अन्याय, अनीति, अनुशासनहीनता और अराजकता फैल जाएगी । भगवान कल्कि की आयु जब 11 से 19 वर्ष  के बीच होगी तब सरकार द्वारा श्रीमंदिर का दायित्व  संभालने के लिए नये सेवक रखे जाएंगे। इस समय भगवान श्रीजगन्नाथ मनुष्यों के अत्याचार को देखकर मंदिर त्यागकर मानव शरीर ग्रहण कर चुके होंगे। मालिका की बात आज सच हो गई है। पुनः महात्मा अच्युतानंदजी ने इस स्थिति का वर्णन करते हुए लिखा है कि:-

“बड़ देऊलु  मोहर पत्थर ख़सिब, गृध्र पक्षी नील चक्र उपरे बसिब।

दिने दिने चलुरे  मु न होइबि दृश्य, भोग सबु पोता हेब जान पाण्डु शिष्य।

समुद्र जुआर माड़ि आसीब निकटे, रक्ष्या नकरिबे केहि प्राणींकु संकटे।”

महापुरुष ने फिर वर्णन किया कि जब गिद्ध पक्षी नीलचक्र पर बैठते हैं तब श्री जगन्नाथ के श्री मंदिर से  बारम्बार पत्थर गिरता हैं। उस समय महाप्रसाद के अर्पण  में महाप्रभु जगन्नाथ दर्शन नहीं देंगे। ऐसा बार- बार होने पर महाप्रसाद को कई बार मिट्टी के नीचे दबा  दिया जाएगा। इससे ये प्रमाण मिलता  है कि श्रीजगन्नाथ जी की मंदिर की परंपरा के अनुसार भगवान जगन्नाथ को जब  महाप्रसाद अर्पित किया जाता है, तब महाप्रभु जगन्नाथजी, महाप्रसाद अर्पण करने वाले मुख्य पुजारी को दर्शन देते हैं। किन्तु  महापुरूष अच्युतानंदजी की वाणी  के अनुसार, जब गिद्ध पक्षी या बाज पक्षी नीलचक्र पर बैठता है, उस समय भगवान के श्रीमंदिर से पत्थर गिरेगा और श्रीजगन्नाथ महाप्रभु के महाप्रसाद अर्पण विधि के समय मुख्य पुजारी को दर्शन नही देंगे। और इस समय महाप्रभु का महाप्रसाद मिट्टी में दबा दिया जाएगा। महापुरुष अच्युतानंदजी ने इसका उल्लेख एक चेतावनी के रूप में किया कि इस समय, समुद्र में बार-बार तूफान आएगा और समुद्र का जलस्तर बहुत ऊपर उठेगा और पृथ्वी पर बाढ़ आएगी। जो आज धरती पर स्पष्ट दिखाई दे रहा है।  यह संकेत जगन्नाथ क्षेत्र में बार–बार मिला है, और उसके बाद बड़े बड़े संकट आने वाले हैं। इसलिए उन्होंने एक सहृदय संत होने के नाते लोगों में मानसिक परिवर्तन हो और वे वैष्णव धर्म एवं ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पित हों और अभक्ष्य भक्षण समेत अन्य दुर्गुणों का भी त्याग करें। इसके लिए महापुरुष ने कलियुग के मनुष्यों को सचेष्ट किया है। महापुरुष ने इस सन्दर्भ में फिर से वर्णन किया है:-

“श्री धामरु एक बड़ पाषाण ख़सिब, दिबसरे उल्लूक तार उपरे बसिब।

मो भुबने उल्कापात हेब घन घन, जेउ सबु अटे बाबू अमंगल चिन्ह।”

महापुरुष ने कहा कि श्री जगन्नाथजी के मुख्य मंदिर से एक विशाल पत्थर गिरेगा और दिन के समय में पत्थर पर एक उल्लू  बैठेगा और ये दोनों संकेत मंदिर में घटित हो चुके हैं तथा श्रीजगन्नाथ क्षेत्र में, आने वाले निकट भविष्य में बार-बार उल्कापिंड गिरेगा, इसका प्रमाण हमें महापुरुष के द्वारा लिखे गए अनेक ग्रंथों से मिलता है।

 

“जय जगन्नाथ”

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1 Comment

  1. Saroj pareek on May 2, 2023 10:36 am

    🙏🏻💝👏🏻

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