Author: Satyanarayan Srivastava

श्री मद्भागवत महापुराण का संक्षिप्त वर्णन नारद जी की प्रेरणा से वेद व्यास जी  ने श्रीमद् भागवत (Shrimad Bhagwat) ग्रन्थ लिखा है। श्रीमद् भागवत में 335 अध्याय हैं। यह व्यास जी द्वारा 18 पुराणों में से रचित बहुत श्रेष्ठ पुराण है। श्रीमद् भागवत कथा में 18 हजार श्लोक, 335 अध्याय व 12 स्कंध हैं। अन्य पुराणों के समान, श्रीमद् भागवत ऋषि वेद व्यास द्वारा लिखे गए हैं। ऋषि शुकदेव जी, जो वेद व्यास के बेटे थे उन्होंने श्रीमद् भागवत को राजा परीक्षित को सुनाया था। राजा परीक्षित वो जिनको ऋषि श्रुंगी द्वारा 7 दिनों में तक्षक साँप द्वारा मारे जाने…

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महात्मा पंचसखाओ ने भविष्य मालिका की रचना भगवान निराकार जगन्नाथ जी के निर्देश से की थी। भविष्य मालिका में मुख्य रूप से कलियुग के अंत  के विषय में सामाजिक, भौतिक और भौगोलिक परिवर्तनों के लक्षणों का वर्णन किया गया है। शास्त्रों के लेखन के अतिरिक्त श्रीजगन्नाथ जी के मुख्य क्षेत्र को आदि वैकुण्ठ (मर्त्य वैकुण्ठ) बताया गया है। 5000 वर्ष कलियुग के बीतने के उपरांत पंचसखाओं ने भक्तों के मन से  संशय को दूर करने के लिए बताया कि, भगवान की इच्छानुसार श्री जगन्नाथ जी के नीलांचल क्षेत्र से विभिन्न संकेत प्रकट होंगे और भक्तों को उन संकेतों का अनुकरण…

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शास्त्रीय मत के अनुसार, भगवान के दसवें अवतार या कल्कि अवतार “संबल के गाँव में” जन्म लेंगे। यह तथ्य का उल्लेख, श्रीमद् भागवत, श्रीमद् महाभारत, कल्कि पुराण और पंच सखा कृत्य भविष्य मालिका में मिलता है।  अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि वह  “संबल ग्राम “ कहाँ है? शास्त्र मत के अनुसार तो यह स्पष्ट है कि संबल ग्राम में ही प्रभु कल्कि का अवतार होगा। आज भारत के विभिन्न भागों में अनेक लोग स्वयं को कल्कि सिद्ध कर रहे हैं और अपनी जन्मभूमि को संबल ग्राम मान रहे हैं। लेकिन श्रीमद् भागवत, महाभारत ग्रंथ के  “वनपर्व” और पंचसखा कृत्य “भविष्य मालिका” में…

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पंच सखाओं द्वारा लिखित भविष्य मालिका ग्रंथ के अनुसार, कलियुग में, भगवान के तीन अवतार इस धरा धाम में अवतीर्ण होंगे। महापुरुष अच्युतानंद जी ने “जाई फूल मलिका” पुस्तक में लिखा है:- “कलि रे तीनि जन्म, हेबे परा प्रभु श्री नारायण, जाई फूल लो, जाई फूल लो, से तो भक्त जिब जीबन जाई फूल लो” अर्थात् :- कलियुग में भक्तों के प्राणनाथ प्रभु श्री नारायण तीन बार धरा धाम पर अवतीर्ण होंगे। कलियुग में भगवान का पहला अवतार – भगवान बुद्ध “भविष्य मालिका” के अनुसार, कलियुग के मध्य भाग में भगवान बुद्ध अवतार लेंगे। भक्त कवि जयदेव ने भी इस संबंध में…

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**गीत गोविन्द-जय देव कृत** श्रितकमलाकुच मण्डल धृतकुण्डल ए। कलितललित वनमाल जय जय देव हरे॥ दिनमणिमण्डल मण्डन भवखण्डन ए। मुनिजनमानस हंस जय जय देव हरे ॥ कालियविषधर गंजन जनरंजन ए। यदुकुलनलिन दिनेश जय जय देव हरे ॥ मधुमुरनरक विनाशन गरुडासन ए। सुरकुलकेलि निदान जय जय देव हरे ॥ अमलकमलदल लोचन भवमोचन ए। त्रिभुवनभवन निधान जय जय देव हरे ॥ जनकसुताकृत भूषण जितदूषण ए। समरशमितदश कण्ठ जय जय देव हरे ॥ अभिनवजलधर सुन्दर धृतमन्दर ए। श्रीमुखचन्द्र चकोर जय जय देव हरे ॥ तव चरणे प्रणता वयमिति भावय ए। कुरु कुशलंव प्रणतेषु जय जय देव हरे ॥ श्रीजयदेवकवेरुदितमिदं कुरुते मृदम् । मंगलमंजुल…

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सत्ययुग में भगवन विष्णु ने अवतार ले के संसार में सत्य, शांति, दया, क्षमा और मैत्री की स्थापन की थी । उस समय सभी शास्त्रों के ज्ञाता थे और सभी वैदिक परम्परा के अनुसार जीवन व्यतीत कर रहे थे। उस समय ज्ञान की दृष्टि से ऋषि-मुनि अहंकारी और अभिमानी हो गये थे और उस पाप के कारण, सत्ययुग का अंत हो गया। त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने अवतार लिया और लोगों ने यज्ञ आदि पुण्य कर्म के माध्यम से भगवान श्रीराम के अंग संग लाभ किया और त्रेता युग के अंत में, उन्होंने रावण जैसे महान पापियों का बिनाश…

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श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है – “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥” अर्थ:- उपरोक्त श्लोक में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मैं प्रकट होता हूं, मैं आता हूं, जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब मैं आता हूं, जब-जब अधर्म बढता है तब-तब मैं आता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मैं आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की संस्थापना के लिए मैं आता हूं और युग-युग में मानव रूप…

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कलियुग की चतुर्युग गणना के अनुसार 4,32,000 वर्ष  भोग होना चाहिए। परंतु मनुष्य कृत पाप कर्मों की कारण, कलि युग की आयु का क्षय होता है। इस कलियुग की आयु भविष्य मालिका ग्रंथ के अनुसार जिन 35 प्रकार के पापों के कारण से क्षय होने वाली है, उन सम्पूर्ण पापों का नाम निम्नलिखित  प्रकार से वर्णित है:- पितृ हत्या मातृ हत्या स्त्री हत्या शिशु हत्या गौ हत्या ब्रह्म हत्या भ्रूण हत्या मातृ हरण भगिनी हरण कन्या हरण भातृ वधु हरण विधवा स्त्री हरण परायी स्त्री हरण स्त्री हरण गर्भवती स्त्री हरण कुमारी हरण पशु हरण भूमि हरण पराया धन हरण…

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सत, त्रेता, द्वापर और कलियुग, इन चार युगों में भगवान के पंचसखा इस धरती पर जन्म लेते हैं। युग के अंत में, भगवान विष्णु  के धर्म संस्थापना के कार्य में, पंचसखा अपना सहयोग प्रदान करते हैं। स्वकर्म समाप्त करने के पश्चात, भगवान विष्णु गोलोकधाम या वैकुण्ठ में परावर्तन (वापस लौट) करते हैं। पंचसखाओं का जन्म भगवान के अंग से ही होता है। हर युग में भिन्न भिन्न रूप में ये पंचसखा धरा अवतरण करते हैं। भविष्य मालिका ग्रंथ और पुराणों में यह प्रमाण मिलता है कि सतयुग में पंचसखाओं का नाम था:- नारद, मार्कण्ड, गार्गव, स्वयंभू और कृपाजल। सतयुग के…

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युग चक्र के अनुसार पहला सतयुग, दूसरा त्रेतायुग, तीसरा द्वापरयुग और आखिर में कलियुग का आगमन होता है। वर्तमान  समय में कलियुग की सम्पूर्ण आयु समाप्त हो चुकी है और युग संध्या काल चल रहा है। कोई भी युग के अंत और एक नए युग के प्रारंभ के समय को युगसंध्या या संगम युग कहा जाता है। कलियुग की आयु मनुस्मृति के आधार पर 4,32,000 वर्ष  मानी जाती है। परंतु मनुष्य कृत घोर पाप कर्मों के कारण से 4,27,200 वर्ष क्षय हो जायेगी और मात्र 4,800 वर्ष  ही कलियुग की भोगदशा होगी यह वर्णन मिलता है। मनुस्मृति के अनुसार नीचे…

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